
रक्षा उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले करीब तीस हजार कल-पुर्जों का देश में ही निर्माण किया जाएगा. इससे सरकार को सालाना करीब 31 हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा की बचत होगी. फिलहाल देश में रक्षा सामग्री का निर्माण तो होने लगा है, लेकिन छोटे कल पुर्जों के लिए आयात से निर्भरता खत्म नहीं हो पा रही है.
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार रक्षा उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न प्रकार के कल पुर्जों की एक व्यापक सूची तैयार की गई है. आमतौर पर ये उपकरण किसी रक्षा उपकरण के प्रमुख हिस्से नहीं हैं बल्कि बेहद छोटे-छोटे पार्ट्स हैं. जैसे एक छोटा सा उपकरण है हाई प्रेशर सेफ्टी रिलीफ वॉल्व, जो कई रक्षा उपकरणों में इस्तेमाल होता है. लेकिन देश में नहीं बनता. वजह यह है कि अभी तक देश में इसका बाजार नहीं था. विदेशों में जहां बड़े पैमाने पर रक्षा उपकरण तैयार होते हैं, वहां कई छोटी कंपनियां हैं, जो उनके साथ मिलकर उनका निर्माण करती हैं.
मंत्रालय के अनुसार मेक इन इंडिया के तहत देश में रक्षा सामग्री का उत्पादन बढ़ा है. पिछले साल यह एक लाख करोड़ से भी अधिक हो गया है. सार्वजनिक रक्षा कंपनियों के साथ-साथ निजी क्षेत्र में भी रक्षा सामग्री तैयार की जा रही है, लेकिन सरकारी एवं निजी कंपनियां छोटे कल-पुर्जों के पूर्ति आयात से कर रहे हैं. रक्षा मंत्रालय के आकलन के अनुसार करीब 31 हजार करोड़ प्रति वर्ष 30 हजार कल पुर्जों के आयात पर खर्च होते हैं. ज्यादातर खर्च अभी सार्वजनिक रक्षा कंपनियों के जरिये किया जा रहा है.
अभियान और तेज होगा
मंत्रालय ने अब तक चार ऐसी सूची जारी की हैं, जिनमें बडे पैमाने पर इस्तेमाल होने वाले कल पुर्जों के आयात को धीरे-धीरे बंद कर दिया जाएगा. इन सूचियों में दर्ज कुल 2166 कल पुर्जों को देश में निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
310 पुर्जे देश में बन रहे
मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि हालांकि तीन साल पूर्व इसकी औपचारिक शुरुआत कर दी गई थी, जिसके चलते अब तक 310 कल पुर्जों का देश में ही निर्माण होने लगा है, लेकिन इस अभियान को और तेज किया जाएगा, क्योंकि यह प्रगति संतोषजनक नहीं है. मंत्रालय इसके लिए उद्योग जगत को डीआरडीओ से भी तकनीक विकसित करने में सहायता प्रदान करने को कहा है. इसके अलावा मंत्रालय इनोवेशन फंड के जरिये भी निजी कंपनियों को मदद प्रदान कर रहा है.