सुप्रीम कोर्ट ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से साफ इनकार कर दिया है. कोर्ट ने इस संबंध में याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार भी लगाई है. शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय पशु घोषित करना क्या कोर्ट का काम है? अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि इससे किसके मूल अधिकारों का हनन हो रहा है? जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, ‘सरकार गायों के संरक्षण की बात करती है. भारत सरकार के लिए गायों का संरक्षण बेहद जरूरी है. हमको गाय से सब कुछ मिलता है.’
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा कि सरकार को इस दिशा में विचार करने के लिए निर्देश जारी करें. मालूम हो कि पिछले साल एक मामले की सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गायों की हालत और गौ हत्या की बढ़ती घटनाओं को लेकर बेहद अहम फैसला सुनाया था. कोर्ट ने केंद्र सरकार को गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर संसद में बिल पेश करने का सुझाव दिया था. अदालत ने कहा था कि गायों की सुरक्षा को हिंदुओं के मौलिक अधिकार में शामिल किया जाना चाहिए.
इस समय देश का राष्ट्रीय पशु बाघ है लेकिन वन्यजीव बोर्ड ने 1969 में शेर को देश का राष्ट्रीय पशु घोषित किया था. बाद में साल 1973 में बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया गया. बता दें कि किसी पशु को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के पीछे कई पैरामीटर होते हैं.
‘गाय भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा’
हाईकोर्ट के मुताबिक, गायों को किसी एक धर्म के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. यह भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है. कोर्ट ने ये भी कहा था कि अपनी संस्कृति को बचाना हर भारतवासी की जिम्मेदारी है. महज स्वाद पाने के लिए किसी को भी इसे मारकर खाने का अधिकार कतई नहीं दिया जा सकता. हाईकोर्ट ने कहा था कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए और गौरक्षा को हिंदुओं के मौलिक अधिकार में रखा जाना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जब देश की आस्था और संस्कृति पर चोट मारी जाती है, तो इससे देश कमजोर होता है.