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अनुच्छेद-370 से मुक्ति के पांच साल: कश्मीर के विकास और चुनौतियों का सफर

05 अगस्त। इस तारीख ने इन वर्षों में दो बार बड़ी सुर्खियां बटोरी। सुर्खियां भी ऐसी, जो देश-दुनिया तक चर्चा का विषय बनीं। सबसे पहले 2019 में तब, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 व 35ए से आजादी मिली। दूसरी बार ठीक एक साल बाद उसी दिन तब, जब 2020 में अयोध्या में श्रीराम मंदिर का मोदी ने शिलान्यास किया।

आज हम इस खास दिन की चर्चा सिर्फ इसलिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35ए के खात्मे के पांच साल पूरे हुए हैं। हम इसकी चर्चा इसलिए भी कर रहे हैं, क्योंकि यह वह अवधि है, जिसमें एक निर्वाचित सरकार अपना लगभग एक कार्यकाल पूरा कर लेती। यहां के लोग तमाम बदलावों से खुश हैं, लेकिन, राज्य का दर्जा और अपनी सरकार चुनने का सपना इन पांच सालों में पूरा नहीं हुआ है। यह कसक उनमें साफ-साफ नजर आ रही है।

अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर: अमन और तरक्की की नई इबारत

मंदिरों के शहर जम्मू में प्रवेश करते ही तवी नदी पर रिवर फ्रंट आकार लेता नजर आ रहा है। उधमपुर-रामबन के रास्ते श्रीनगर की ओर बढ़िए तो हाईवे और पहाड़ों के बीच टनल में फर्राटा भरतीं गाड़ियां, इस दुर्गम प्रदेश की सुगम यात्रा का आनंद हर क्षण महसूस कराती हैं। चिनाब पर विश्व का सबसे ऊंचा रेल पुल बन गया है। कश्मीर जल्दी ही रेल मार्ग के जरिए पूरे देश से जुड़ने को तैयार है। पीएम जब चाहें, हरी झंडी दिखा सकते हैं।

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अमन के साथ तरक्की की यह कहानी सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और बड़े-बड़े प्रोजेक्ट तक सीमित नहीं है। कटड़ा में मां वैष्णो देवी के दरबार पहुंचिए तो श्रद्धालु यात्रा और दर्शन की सुविधाओं में सुधार की तारीफ करते नजर आते हैं। श्रीनगर पहुंचने पर डल झील हो या हिंदुओं की श्रद्धा का केंद्र शंकराचार्य व खीर भवानी मंदिर, सभी पर्यटकों व श्रद्धालुओं के आकर्षण के केंद्र हैं।

अमरनाथ यात्रा पिछले 10 वर्षों का इतिहास बनाने वाली है। इस दुर्गम यात्रा को रोपवे से सुगम बनाने की रूपरेखा तैयार है। बूढ़ा अमरनाथ यात्रा की तैयारी भी चल रही है। देश-दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं के बीच आतंकी घटनाओं का कोई असर नजर नहीं आया है। सूबे में गन और गोली की जगह निवेश और नौकरियों की बात हो रही है। चर्चित लाल चौक पर पर्यटकों का जमावड़ा राज्य के बदलावों की गवाही दे रहा है।

श्रीनगर के लाल चौक के पास एक मल्टीनेशनल चेन में काम करने वाले कारोबार प्रबंधन में स्नातक (बीबीए) फैजान कहते हैं कि यहां के आम लोग अमन पसंद हैं। इन पांच सालों में आतंकवाद और घुसपैठ में काफी कमी आई है। सेना को लोगों का साथ मिला है। अलगाववादी गतिविधियां ठप हैं। जिस पत्थरबाजी से आम लोग त्रस्त थे, वह गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। फैजान कहते हैं कि लाल चौक पर दिल्ली के इंडिया गेट की तरह गुलजार मार्केट से ही समझ सकते हैं, बदलाव कितना पुरसुकून वाला है।

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