कोच्चि। एक मामले की सुनवाई के दौरान केरल हाई कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने बिना शादी के बंधन के युवा पीढ़ी द्वारा जीवन के आनंद (शारीरिक संबंध या सेक्स) लेने की प्रवृति पर चिंता जाती है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में इसे एक सामाजिक बुराई बताया है. समाज में उपभोक्ता संस्कृति बढ़ने की वजह से यूज एंड थ्रो की प्रवृति ने वैवाहिक जीवन को बहुत प्रभावित किया है.
यह टिप्पणी जस्टिस मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की बेंच ने की. 34 साल के एक शख्स ने अपनी 38 साल की पत्नी से तलाक मांगा है. इसी मामले पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी आई है. अपने से ज्यादा उम्र की लड़की से करीब एक दशक पहले प्रेम करने के बाद शादी की थी. उन दोनों की 3 बेटियां हैं और आरोप है कि पति किसी और महिला के साथ अपने संबंधों के आगे बढ़ाने के लिए तलाक चाहता है. हालांकि, पति ने तलाक की अपील में कहा है कि मेरी पत्नी क्रूर व्यवहार करती है. कोर्ट ने तलाक की अर्जी स्वीकार करने से इनकार कर दिया है.
इस मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सोफी ने कहा कि आजकल की युवा पीढ़ी मुक्त जीवन का आनंद लेने के लिए शादी को टालना चाहती है. उन्हें शादी एक बुराई लगती है. ये पीढ़ी ‘WIFE’ शब्द की अपनी हिसाब से व्याख्या कर रही है. यानी ‘WIFE’ को वे ‘वरी इनवाइटेड फॉर एवर’ (चिंता हमेशा के लिए आमंत्रित करना) समझ रहे हैं. उन्होंने कहा कि यूज एंड थ्रो संस्कृति ने हमारे वैवाहिक संबंधों को प्रभावित किया है. इन वजहों से लिव इन रिलेशनशिप में तेजी से इजाफा हो रहा है. यानी जब तक मन लगा साथ रहे और जिस दिन मन किया अलविदा कह दिए.
उन्होंने यह भी कहा कि केरल कभी अपने अच्छे पारिवारिक संबंधों के लिए जाना जाता था, लेकिन वर्तमान प्रवृतियां इसे कमजोर बना रही हैं. यहां तक कि अब लोग बच्चों की भी चिंता नहीं कर रहे हैं.
धार्मिक विवाह को कानूनी मान्यता है. इसे हम एक संस्था के रूप में देखते हैं. इसे हम एकतरफा तोड़ नहीं सकते हैं. आकस्मिक झगड़े को हम क्रूरता नहीं मान सकते हैं. अदालत ने यह भी कहा कि पति के किसी अन्य महिला के साथ संबंध उनके पारिवारिक जीवन में गड़बड़ियां पैदा कर सकती हैं.