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सरकार ने दी दलील… Hijab नहीं है इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा

बेंगलुरु। कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है. कुरान शरीफ में लिखी हर बात धार्मिक है, पर वो इस्लाम के अनुयायियों के लिए अनिवार्य धार्मिक परम्परा भी हो, ये ज़रूरी नहीं है. अगर हिजाब का कुरान शरीफ में उल्लेख हुआ भी है, तो इसी जिक्र भर से वो अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं हो जाती. कर्नाटक सरकार की ओर एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवाडगी ने यह दलील हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में रखी.

‘कुरान शरीफ में लिखी हर बात अनिवार्य नहीं’

सुनवाई के दौरान जस्टिस हेमंत गुप्ता ने सवाल किया कि हिजाब समर्थक पक्ष के वकीलों की दलील है कि जो भी कुरान में लिखा है, वो अल्लाह का आदेश है, उसे मानना अनिवार्य है. इस पर एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवाडगी ने कहा कि हम कुरान के एक्सपर्ट नहीं है, पर अगर ये मान भी लिया जाए कि एक धार्मिक परम्परा के रूप में कुरान में हिजाब का जिक्र है, तो भी इतना भर से हिजाब अनिवार्य धार्मिक नहीं हो जाती. कुरान शरीफ के प्रति पूरी श्रद्धा के साथ मै ये कहना चाहूंगा कि कुरान में लिखी हर बात धार्मिक हो सकती है, पर ये ज़रूरी नहीं कि वो इस्लाम को मानने वालों के लिए अनिवार्य भी हो.

SC के पुराने फैसलों का हवाला दिया

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कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल ने अपनी दलीलों के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने फैसलो का हवाला दिया. प्रभुलिंग नवाडगी ने कहा कि सायरा बानो जजमेट में सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक़ को अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं माना( भले ही उसका जिक्र हदीस में हो). सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य फैसले में इस्लाम में बहु विवाह को अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं माना. इसके अलावा इस्माइल फारुखी केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस्लाम में नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद की अनिवार्यता नहीं है. एडवोकेट जनरल ने कहा कि इस्लाम में बहुत सी महिलाएं है जो हिजाब नहीं पहनती, इसका मतलब ये नहीं कि वो कम इस्लाम को मानने वाली है. फ्रांस और तुर्की में हिजाब पर बैन है.

जस्टिस हेमंत गुप्ता ने भी सवाल किया

बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब को अनिवार्य धार्मिक परम्परा करार दिए जाने की दलील पर सवाल किया. जस्टिस गुप्ता ने कहा मैं लाहौर हाईकोर्ट के एक जज को जानता हूं, वो भारत भी आया करते थे. मैंने कभी उनकी लड़कियों को हिजाब पहने हुए नहीं देखा. यूपी और पटना में भी मैं जब जाता हूं तो वहां कई मुस्लिम परिवारों से बातचीत होती है. वहां भी मैंने किसी महिला को हिजाब पहने नहीं देखा.

‘किसी धर्म के साथ भेदभाव की दलील बेमानी’

एडिशनल सॉलिसीटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि सरकार ने अपनी तरफ से हिजाब पर बैन नहीं लगाया है. सरकार ने शैक्षणिक संस्थाओं से सिर्फ इतना कहा है कि वो ऐसी ड्रेस तय कर सकते है जो किसी धर्म से जुड़ी न हो. सरकार के आदेश के पीछे मंशा छात्रों के बीच समानता को बढ़ावा देना था. हमने किसी भी धर्म की गतिविधि को न बढ़ावा दिया है, न ही प्रतिबंधित किया है और एक धर्मनिरपेक्ष संस्थान में ऐसी ड्रेस से किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए. यहां किसी धर्म के साथ भेदभाव की बात नहीं है. ये सिर्फ स्कूल में अनुशासन कायम रखने का विषय है.

जस्टिस सुधांशु धुलिया की अहम टिप्पणी

सुनवाई के दौरान बेंच के दूसरे सदस्य जस्टिस सुधांशु धुलिया ने एक अहम टिप्पणी की. जस्टिस धुलिया ने कहा कि अगर समानता और एकरूपता के नाम धार्मिक पोशाक को स्कूल में बैन कर दिया जाता है तो फिर बच्चों को विविधता से भरे देश के लिए तैयार किया जाएगा. एक दलील ये भी दी जा सकती है कि हिजाब जैसी धार्मिक पोशाक छात्रों को विविध संस्कृतियों वाले देश को समझने और संजीदा होने में मदद कर सकती है.

जस्टिस धूलिया ने ये टिप्पणी शिक्षकों की ओर से पेश वकील आर वेंक्टरमानी की दलील के दौरान की. वकील वेंकटरमानी का कहना था कि स्कूलों को किसी भी धार्मिक प्रतीको से दूर रखा जाना चाहिए. ताकि बिना किसी धार्मिक भेद के बच्चों को पढ़ाया जा सके. बच्चों में पहले से ही भेदभाव आ जाएगा तो अच्छी शिक्षा देना मुश्किल हो जाएगा. हिजाब मामले पर सुनवाई 22 सितंबर को भी जारी रहेगी. कल हिजाब समर्थक पक्ष के वकीलों को कर्नाटक सरकार और शिक्षकों की दलील का जवाब देने का मौका मिलेगा.

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