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सड़क परिवहन उद्योग की अनकही कहानी सरकार को कर्मचारियों की परवाह नहीं

भारत का परिवहन उद्योग हमारी अर्थ व्यवस्था एवं समाज रचना का आवश्यक अंग है। भौगोलिक दृष्टि से भारत एक विशाल देश है। इसका क्षेत्रफल 3.26 मिलियन वर्ग किलोमीटर है। इसकी जनसंख्या 130 करोड़ से ऊपर पहुंच रही है। सड़कों की लम्बाई 3314 मिलियन किलोमीटर है। सारे देश में छोटी-बड़ी सड़कों का जाल फैला हुआ है जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग, जिले की छोटी एवं बड़ी सड़के मिलाकर ग्रामीण क्षेत्र की सड़के भी सम्मिलित है। इस देश की भौगोलिक स्थिति में बर्फीले पहाड़, मरूस्थलों की बंजर जमीन, नदियों के किनारे, उंचे-नीचे पठार, जंगल, खेत सभी का समावेश है। इसमें सड़क परिवहन की विशेष भूमिका है। अधिकांश क्षेत्र में रेलमार्ग नहीं है।

सड़क परिवहन देशवासियों को एक दूसरे से जोड़ने का कार्य करता है। रेल •मार्गों की ग्रामीण क्षेत्र में कमी के कारण परिवहन के अलावा माल परिवहन भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। माल परिवहन जीवन उपयोगी वस्तुओं तथा अन्य महत्वपूर्ण सामान को देश के कोने-कोने से लाने ले जाने का काम करता है। माल परिवहन की महत्वपूर्ण भूमिका इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि बहुत से क्षेत्र हवाई मार्ग तथा जल मार्गों एवं रेल परिवहन की पहुंच के बाहर है।

सरकार की नीति के कारण सार्वजनिक परिवहन उद्योग खतरे में इस उद्योग में कार्यरत कर्मचारियों में सार्वजनिक परिवहन उद्योग, असंगठित परिवहन के साथ टेम्पो, आटो रिक्शा, गुड्स ट्रांसपोर्ट में माल उतारने तथा चढ़ाने वाले हम्माल भी सम्मिलित हैं। औसतन समूचे भारत वर्ष में कोई 50 लाख से भी अधिक बसे संचालित की जाती है। इसमें लगभग पांच लाख 10 हजार बसें सार्वजनिक परिवहन उद्योग की है। कुछ राज्यों में सार्वजनिक उद्योग बंद हो गये हैं एवं कुछ उद्योग बन्द होने की कगार पर हैं। कुछ सार्वजनिक परिवहन संस्थान अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके बावजूद भी सार्वजनिक परिवहन उद्योग देश का सबसे बड़ा संगठित उद्योग है। सार्वजनिक परिवहन में लगभग 7 लाख से अधिक और विभिन्न क्षेत्रों को मिलाकर 10 लाख लोग कार्य करते हैं। इस उद्योग में राज्य सरकारों की लगभग 10 अरब की पूंजी का समावेश है।

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नई आर्थिक नीति से सार्वजनिक परिवहन उद्योग को भारी झटका। सरकार ने इस उद्योग को पूंजीगत सहायता देना बन्द कर दिया है। बजट में इस उद्योग को कोई सहायता नहीं दी जा रही है। सरकार ने निजीकरण तथा अनियमित बस यातायात को बढ़ावा देना प्रारंभ कर दिया है। इसमें उद्योग के संचालन में रूकावट आ रही है। इसका विकास रूक गया है एवं उद्योग का स्वरूप संकुचित हो रहा है। वास्तव में सार्वजनिक परिवहन उद्योग का अतीत गौरवशाली था किन्तु वर्तमान पीड़ा दायक एवं भविष्य अनिश्चित है।

सार्वजनिक परिवहन उद्योग के कर्मचारियों के वेतन तथा सेवा शर्तों में विभिन्न राज्यों में भिन्नता है और कहीं कहीं कुछ राज्यों में अलग अलग हालात हैं। सामूहिक सौदागिरी के द्वारा राज्यवार अथवा क्षेत्रीय स्तर पर समझौते होते हैं। लगभग 60 वर्ष पहले परिवहन उद्योग के कर्मचारियों का वेतन पुर्नरीक्षित करने के लिए भारत सरकार ने एक वेजबोर्ड गठन किया था इसके पश्चात् कोई ध्यान नहीं दिया गया।

कर्मचारियों की समस्या के निराकरण के लिए कोई नीति निर्धारित नहीं है। निजी क्षेत्र की बस, ट्रक तथा अन्य वाहनों की संख्या, कर्मचारियों की संख्या, पूंजी की लागत के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। सरकार के पास भी यह जानकारी नहीं है। सरकार के पास इस क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण के लिए कोई नीति भी नहीं है।

वाहनों की संख्या में निरंतर वृद्धि बहुत पहले सेन्ट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट पूना की एक पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 30 मिलियन वाहन है। 2-5 मिलियन वाहन प्रतिवर्ष बढ़ जाते हैं। निजी क्षेत्र का एक बहुत बड़ा मार्ग गुड्स ट्रांसपोर्ट (माल परिवहन ) लगभग असंगठित है। निजी क्षेत्र के श्रमिकों को कानून में निर्धारित मजदूरी से भी कम मजदूरी मिलती है। यदि संगठित क्षेत्र से तुलना की जावे तो सेवा शर्ते भी अत्यधिक अस्त व्यस्त तथा चौका देने वाली है। समूची स्थिति अत्यधिक कष्टकारक है। कर्मचारी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। लोगों को अल्पकालीन करार पर नियुक्त किया जाता है तथा तदर्थ आधार पर वेतन दिया जाता है। उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता है।

अभी हाल ही में भारत सरकार ने श्रम संघों के सभी सुझाओं को नजर अंदाज करते हुए एवं श्रम संघों के अनुशासित आन्दोलनों के बावजूद भी मोटर व्हीकल एक्ट 1988 तथा मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट 1961 को संशोधित कर सड़क परिवहन कर्मचारी और छोटे बस आपरेटरों को पूंजीपतियों का गुलाम बना दिया है।

उल्लेखनीय है कि यथा संशोधित मोटरयान (संशोधन) अधिनियम, 2019 बस ट्रक एवं सड़क पर संचालित वाहनों को नियमित करता है तथा संलग्न कर्मचारियों को अनुशासित करता है, वही मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट 1961 में सड़क परिवहन कर्मचारियों की सेवा शर्तों का अलग अलग उल्लेख है। सरकार ने मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट 1961 को 16 प्रचलित कानूनों के साथ संलग्न कर अब एक “लेबर कोड ऑन ऑकुपेशनल सेफ्टी हेल्थ एण्ड वर्किंग कन्डीशन” के नाम से नया कानून बना दिया। इस प्रकार सरकार ने काफी सोच समझ के पूंजीवादी नीति का परिचय देते हुए सड़क परिवहन उद्योग में अपनी जान की बाजी लगाने वाले 24 घन्टे कार्य करने वाले श्रमिकों के शोषण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

भवदीय

( कृपाशंकर वर्मा )

अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय परिवहन कर्मचारी फेडरेशन

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