राम ने हमेशा धर्म को प्राथमिकता दी। चाहे वनवास हो या युद्ध, उन्होंने न्याय और सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा। हमें भी जीवन में नैतिकता और सिद्धांतों पर टिके रहना चाहिए।
पिता के वचन को पूरा करने के लिए राम ने सिंहासन छोड़कर 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया। यह सिखाता है कि कर्तव्य ही सर्वोपरि होना चाहिए।
राम ने सभी को समान सम्मान दिया—चाहे वह निषादराज गुह हो या वानर सेना। छोटे-बड़े का भेद किए बिना विनम्रता से पेश आना ही महानता है।
सीता की खोज, लंका युद्ध, और वनवास के कठिन समय में भी राम ने धैर्य नहीं खोया। मुश्किलों में संयम रखना सफलता की कुंजी है।