
गोरखपुर . प्रतिष्ठित गांधी शांति पुरस्कार-2021 पाने वाला गीता प्रेस सौ साल से सनातन संस्कृति की संवाहक है. इसकी ख्याति सनातन संस्कृति और धार्मिक पुस्तकों के तीर्थ के रूप में है. पुरस्कार को प्रबंधन से जुड़े लोगों ने सनातन संस्कृति का सम्मान बताया तो वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया है.
वर्ष 1923 में स्थापित गीता प्रेस सनातन धर्म की पुस्तकों की सबसे बड़ी प्रकाशक है. स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों की साक्षी गीता प्रेस कोरोना काल में भी पूरी शिद्दत से धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन करती रही. प्रेस के 100 वर्षों के सफर में भगवद गीता और रामचरित मानस सहित करीब 1800 तरह की पुस्तकों की 92 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं.
समाज सुधार को दी आवाज 1923 में अध्यात्मवादी जयदयाल गोयनका और सह-संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार के प्रयास के रूप में गीता प्रेस की शुरुआत हुई. गीता प्रेस की पुस्तकों ने विधवा पुनर्विवाह, सती प्रतिबंध और ब्रह्म आंदोलन में भी अमिट छाप छोड़ी.
हनुमान प्रसाद पोद्दार ने दी गीता प्रेस को उड़ान संस्थापक गीता-मर्मज्ञ जयदयाल गोयनका थे. लेकिन हनुमान प्रसाद पोद्दार भाई जी ने गीता प्रेस को उड़ान दी. ‘कल्याण’ मासिक पत्र के संपादक के रूप में भाई जी का पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष स्थान है. कल्याण के लिए उन्होंने महात्मा गांधी से भी लेख लिखवाए. गांधी जी की सलाह पर ही गीता प्रेस ने कभी अपनी पुस्तकों में विज्ञापन नहीं प्रकाशित किया.
गीता प्रेस को स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना संस्थान द्वारा सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की सराहना करना है. गांधी शांति पुरस्कार 2021, मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए गीता प्रेस के महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता देता है, जो सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन शैली का प्रतीक है. – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री