
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हिंसा प्रभावित मणिपुर में कानून-व्यवस्था एवं संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह से चरमरा गई है. शीर्ष न्यायालय ने हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रहने पर कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि पुलिस ने कानून-व्यवस्था पर पूरी तरह से नियंत्रण खो दिया है. कोर्ट ने यह टिप्पणी मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को तलब करते हुए की है.
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि पुलिस द्वारा की जा रही जांच सुस्त और लचर है. कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. इतना समय बीतने के बाद बयान दर्ज किए जा रहे हैं, ऐसा लगता है कि वहां कानून व्यवस्था नहीं थी और संवैधानिक तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो गया.
पीठ ने कहा कि ‘हो सकता है कि गिरफ्तारी इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि पुलिस इलाके में प्रवेश नहीं कर सकती थी, बावजूद इसके पूरी कानून-व्यवस्था पूरी खराब हो गई थी.’ यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को सोमवार को पेश होकर अब तक की गई कार्रवाई से अवगत कराने का आदेश दिया. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि रिपोर्ट से लगता है कि दो माह तक राज्य में पुलिस प्रभारी नहीं थी.
क्या पुलिस ने कोई गिरफ्तारी की शीर्ष अदालत ने पूछा कि ‘क्या पुलिस ने कोई गिरफ्तारी की है? क्या डीजीपी ने उन पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की, जिन पर महिलाओं को भीड़ के हवाले करने का. आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बात साफ है कि एफआईआर दर्ज करने में काफी देरी हुई है. मणिपुर में एक महिला को कार से खींचने और उसके बेटे की हत्या का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह घटना चार मई को हुई और एफआईआर सात जुलाई को दर्ज की गई थी.
बयान दर्ज करने अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को उन दो पीड़ित महिलाओं का बयान दर्ज करने की अनुमति दे दी है जो वायरल वीडियो में दिख रही हैं. पीठ ने यह अनुमति तब दी, जब सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हुए अपराध को लेकर दर्ज मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी गई.