
नागपुर . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि जब तक समाज में भेदभाव है, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए. भेदभाव भले ही नजर नहीं आये लेकिन यह समाज में अभी व्याप्त है. उन्होंने यह बात यहां एक कार्यक्रम में कही.
भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि सामाजिक व्यवस्था में हमने अपने बंधुओं को पीछे छोड़ दिया. हमने उनकी देखभाल नहीं की और यह 2 हजार वर्षों तक चला. जब तक हम उन्हें समानता नहीं प्रदान कर देते हैं, तब तक कुछ विशेष उपचार तो होने ही चाहिए और आरक्षण उनमें एक है. इसलिए आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक ऐसा भेदभाव बना हुआ है. संविधान में प्रदत्त आरक्षण का हम संघवाले पूरा समर्थन करते हैं.
सरसंघचालक ने कहा कि यह केवल वित्तीय या राजनीतिक समानता सुनिश्चित करने के लिए बल्कि सम्मान देने के लिए भी है. उन्होंने कहा कि भेदभाव झेलने वाले समाज के कुछ वर्गों ने 2 हजार वर्ष तक यदि परेशानियां उठायी हैं तो क्यों न हमें (जिन्होंने भेदभाव नहीं झेला) और 200 वर्ष कुछ दिक्कतें उठानी चाहिए.
संस्कृति को मिटाने के प्रयास किए जा रहे आरएसएस प्रमुख ने कहा है कि देश की सत्य पर आधारित संस्कृति को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है. भागवत ने कहा, हमारी संस्कृति की जड़ें सत्य पर आधारित हैं. हालांकि, इस संस्कृति को उखाड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं. दुनिया भर में परिवार व्यवस्था ध्वस्त हो रही है. लेकिन भारत इस संकट से बच गया है, क्योंकि सच्चाई इसकी नींव है. भागवत ने सांसारिक सुखों की पूर्ति की बढ़ती प्रवृत्ति और कुछ लोगों द्वारा अपने दर्शन के माध्यम से इसे उचित ठहराने के प्रयास को ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ भी कहा. आरएसएस प्रमुख ने कहा, सांसारिक सुखों के प्रति यह झुकाव सीमा पार कर गया है. कुछ लोग स्वार्थी उद्देश्यों के कारण सांसारिक सुखों को पूरा करने की इस प्रवृत्ति को सही ठहराने की कोशिश करते हैं. इसे आज सांस्कृतिक मार्क्सवाद कहा जाता है.
युवाओं के बूढ़ा होने से पहले अखंड भारत
मोहन भागवत ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी मन से प्रयास करे तो उनके बूढ़े होने से पहले ‘अखंड भारत’ या अविभाजित भारत एक वास्तविकता होगी. जो लोग भारत से अलग हुए उन्हें लगने लगा है कि उन्होंने गलती कर दी है. संघ प्रमुख भागवत ने कार्यक्रम में एक सवाल का जवाब देते कहा कि वह यह नहीं बता सकते कि अखंड भारत कब अस्तित्व में आएगा. लेकिन अगर आप इसके लिए काम करते रहेंगे, तो आप देखेंगे कि बूढ़ा होने से पहले ही यह साकार हो जाएगा. क्योंकि हालात ऐसे बन रहे हैं कि जो लोग भारत से अलग हुए उन्हें लगने लगा है कि उन्होंने गलती कर दी. उन्हें लगता है कि ‘हमें फिर से भारत होना चाहिए’. उन्हें लगता है कि भारत बनने के लिए उन्हें नक्शे पर मौजूद रेखाओं को मिटाना होगा. लेकिन यह वैसा नहीं है. भारत होने का अर्थ भारत की प्रकृति (स्वभाव) को स्वीकार करना है.






