
छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक विशेष रंग है, जो हर त्योहार में झलकता है। यहां दिवाली और गोवर्धन पूजा के बाद एक ऐसा उत्सव मनाया जाता है, जिसे ‘मातर तिहार’ कहते हैं। यह पर्व मातृ शक्ति की आराधना का प्रतीक है, जिसमें गाय को मां माना जाता है। वेदों में कहा गया है, “गावो विश्वस्य मातरः,” यानि गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है। इस खास दिन पर यादव समाज विशेष रूप से गौ माता की पूजा करते हैं और जो भोग अर्पित किया जाता है, वह समाज के सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
मातर तिहार की ये हैं खासियतें
मातृ शक्ति की उपासना:
मातर तिहार का मतलब है मां की शक्ति का सम्मान करना। इस दिन यादव समाज गौ माता के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।
खुड़हर देव की स्थापना:
इस उत्सव की शुरुआत गोवर्धन पूजा पर ‘खुड़हर देव’ की स्थापना से होती है। ये देवता नक्काशीदार लकड़ी से बनाए जाते हैं। मड़ई, जो बांस से बनी होती है, इस दिन खास महत्व रखती है। मड़ई में आदिशक्ति का वास माना जाता है, जो गांववासियों की रक्षा करती है।
गायों की सजावट:
पूजा के बाद गायों को अच्छे से सजाया जाता है और उनके गले में सोहाई बांधी जाती है। साथ ही गौ माता को खिचड़ी व। धान खिलाई जाती है, और फिर समाज के लोगों को खिचड़ी और कुम्हड़े की सब्जी परोसी जाती है।
राउत का नृत्य और दोहे:
इस उत्सव में राउत बंधू खास परिधान में सजते हैं। रंग-बिरंगे कपड़ों में लिपटे ये राउत साफा बांधते हैं और मोरपंख से सजते हैं। गढ़वा बाजा की धुन पर कबीर और रहीम के दोहे गाकर वे उत्सव का माहौल बना देते हैं।
लाठी के करतब:
मातर तिहार का एक और दिलचस्प हिस्सा है लाठियों के करतब। राउत तेंदू की लाठियों से शौर्य का प्रदर्शन करते हैं, जिसे ‘अंखरा विद्या’ कहा जाता है। तलवारबाजी और आग से जुड़े करतब भी दिखाए जाते हैं, जिसमें युवा और बुजुर्ग दोनों भाग लेते हैं।
एक सामूहिक उत्सव
इस तरह, ‘मातर तिहार’ एक अनोखे अंदाज में मनाया जाता है, जो केवल यादव समाज तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य समाजों के लोग भी इसमें भाग लेते हैं। यह त्योहार छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का एक जीवंत उदाहरण है, जहां सब मिलकर मड़ई मेलों का आनंद उठाते हैं और सामूहिक रूप से मातृ शक्ति की आराधना करते हैं।