
भारत के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर अनेक खनिजों की मौजूदगी की पुष्टि की है जिनमें सल्फर, एल्युमिनियम, सिलिकान, कैल्शियन एवं आयरन शामिल हैं. लेकिन एक अनोखी खोज उसने और की है. लैंडर विक्रम ने चंद्रमा पर भूकंप (मूनक्विक) को भी रिकॉर्ड करने में सफलता हासिल की है.
वैज्ञानिकों की मानें तो यह चांद के अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाने में मददगार साबित हो सकता है. नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार लैंडर के सिस्मोग्राफ में कई कंपन दर्ज किए गए हैं. इनमें से एक बड़े कंपन ने विशेष रुप से वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. दुनिया भर के वैज्ञानिक इन आंकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं. इसी कड़ी में कैनबरा स्थित आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में ग्रह भू रसायन विभाग के प्रोफेसर मार्क नॉमन कहते हैं कि आंकड़ों से ऐसा लगता है कि उपकरण ने एक बहुत छोटी भूंकपीय घटना को रिकार्ड किया है. यह लगभग 4 सेकेंड तक महसूस होती है तथा उसके बाद पृष्ठभूमि में चली जाती है. इसरो के वैज्ञानिकों का मानना है कि यह एक छोटा चंद्रभकूंप या छोटे उल्कापिंड का प्रभाव है.
संभव सल्फर क्षुद्रग्रहों की बमबारी से आया चंद्रमा पर सल्फर की मौजूदगी को लेकर भी नेचर में राय व्यक्त की गई है.
इसके अनुसार सल्फर पिघली हुई चट्टान का एक प्रमुख तत्व है. शोधकर्ताओं का मनना है कि आदिम चंद्रमा गर्म पिघली हुई चट्टान की एक मोटी परत से ढका हुआ रहा होगा जो क्रिस्टलीकृत होकर चंद्रमा की सतह का निर्माण करता था. एक संभावना यह है कि चंद्रमा की सतह पर सल्फर क्षुद्रग्रहों की बमबारी से आया हो. हालांकि वैज्ञानिकों की राय है कि चंद्रमा की रासायनिक संरचना को समझने के लिए इसरो को अपने निष्कर्षों को अमेरिकी अपोलो मिशन के नतीजों के साथ जोड़ना होगा.
हलचल की गहराई जानना जरूरी
नॉर्मन कहते हैं कि चंद्रमा पर इस प्रकार की हलचलों को गहराई तक समझने की जरूरत है. यह ज्वारीय बलों एवं स्थानीय टेक्टोनिक समायोजनों की वजह से हो सकते हैं. लेकिन विक्रम से प्राप्त आंकड़ों के बाद अब वैज्ञानिकों को चंद्रमा पर एक वैश्विक भूकंपीय नेटवर्क स्थापित करने की जरूरत है. इससे किसी घटना विशेष के महत्व को समझने और उसके दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन करने में मदद मिलेगी.