
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सरकारी डॉक्टर घर में दवाएं रख सकता है और उन्हें मरीजों को दे सकता है. यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक मेडिकल कॉलेज की सहायक प्रोफेसर डॉक्टर के खिलाफ ड्रग्स एंड कास्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत दायर चार्जशीट निरस्त कर दी.
त्वचा रोग विशेषज्ञ अतिलक्ष्मी पर आरोप था कि वह अपने सरकारी आवास पर मरीजों को देखती हैं और वहां उसने दवाएं स्टाक कर रखी हैं जो मरीजों को बेची जाती हैं. ड्रग इंस्पेक्टर ने डॉक्टर के आवास पर छापामार कर 23 किस्म की दवाएं पकड़ीं और उसके खिलाफ सरकार से उचित अनुमति लेकर इग्मोर की मजिस्ट्रेट कोर्ट में रिपोर्ट दायर की. धारा 18 सी में प्रावधान है कि बिना उचित लाइसेंस के कोई भी व्यक्ति दवाओं को भंडारण, बिक्री और प्रदर्शन नहीं कर सकता. इसका उल्लंघन करने पर पांच वर्ष तक की सजा का प्रावधान है.
रिपोर्ट रद्द कराने के लिए डॉक्टर ने मद्रास हाईकोर्ट में अर्जी दायर की. एकल पीठ ने डॉक्टर की अर्जी खारिज कर दी. इसके बाद फैसले को डॉक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि डॉक्टर सरकारी मेडिकल कॉलेज में वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ है और इस विभाग की अध्यक्ष है. कोर्ट ने कहा, आरोपी एक मेडिकल प्रैक्टिशनर है और वहीं पकड़ी गई दवाएं भी कम मात्रा हैं जो किसी भी डॉक्टर के घर पर परामर्श रूम में मिल सकती हैं. हमारी राय में इस मामले में कोई अपराध नहीं हुआ है. यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट डॉक्टर अतिलक्ष्मी के खिलाफ चार्जशीट निरस्त कर दी.