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बारिश से जीवन अस्त-व्यस्त, डूबने से कैसे बचेंगे शहर, जाने 5 उपाय

सावन माह में कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की आशंका है. पश्चिमी विक्षोभ और मॉनसूनी हवाओं के कारण पिछले सप्ताह उत्तर भारत में भारी बारिश हुई है. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने और भूस्खलन से जहां हालात गंभीर हैं, वहीं पंजाब और हरियाणा में बाढ़ जैसे हालात हैं. उधर, बिहार, झारखंड और पूर्वी यूपी में सूखे के आसार हैं. दक्षिण भारत में कम बारिश से किसान परेशान हैं.

रिकॉर्डतोड़ मानसूनी बारिश ने उत्तर भारत को हलकान कर दिया है. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सहित हिंदी पट्टी के तमाम राज्यों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं. पहाड़ों पर तो भू-स्खलन की घटनाएं भी हो रही हैं. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, भारी बारिश की यह प्रवृत्ति अब बदलने वाली नहीं है. यह जलवायु परिवर्तन का असर है कि अब हम बार-बार मौसम की चरम अवस्था के गवाह बनने को अभिशप्त हैं. अब बारिश का पानी शहरों, विशेषकर महानगरों को ज्यादा डुबोने लगा है. इसकी वजह है. इन बड़े शहरों में जल-निकासी की व्यवस्था पंगु बना दी गई है. इससे बारिश का पानी ठहर जाता है. ऐसे में, यातायात में तो रुकावट आती ही है, बीमारियां फैलती हैं. झुग्गियों या कम आय वाले लोगों के रिहाइशी इलाके अधिक प्रभावित होते हैं और इन सबसे अधिक, लोगों की उत्पादकता घटने लगती है. ऐसा नहीं है कि छोटे शहर इन सबसे महफूज हैं. वहां भी पर्याप्त कुव्यवस्था है, लेकिन आर्थिक गतिविधियों का तुलनात्मक रूप से कम होना उनके पक्ष में जाता है.

बरसात में शहरों में बाढ़ जैसे हालात बनने के पांच बड़े कारण हैं.

पहला, गैर-कानूनी व बेतरतीब निर्माण-कार्य. इसमें शहरों के बाहरी हिस्सों में बनी अवैध कॉलोनियां भी शामिल हैं, जहां सड़क, नाली, सीवर आदि की समुचित व्यवस्था नहीं होती, जिसके कारण वहां पानी ठहर जाता है. इससे शहर के दूसरे हिस्से भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं. दूसरी वजह है, शहरी नियोजन में प्राकृतिक जल-निकासी के मार्ग की अनदेखी. बेंगलुरु इसका एक बड़ा उदाहरण है, जहां कभी पिनाकिनी नदी वर्षा-जल को खुद में समा लेती थी, वहां सड़कों और कॉलोनियों का जाल इस कदर फैला कि यह नदी सिमटती चली गई. नतीजतन, तकनीकी रूप से समृद्ध यह शहर अब मामूली बारिश में भी बेबस सा नजर आता है.

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तीसरी समस्या सीवर ओवरफ्लो की है. कई जगह सीवर व सीवेज निस्तारण वाले स्थान के स्तर में असमानता होती है. राजधानी दिल्ली में ही आईटीओ पर सीवर का गंदा पानी और वर्षा-जल मिलकर पुलिस मुख्यालय से लेकर रिंग रोड को जलमग्न कर देता है.

चौथी वजह है, कूड़े का अनियोजित निस्तारण. इस समस्या के दो पहलू हैं. पहला, हमें सामान्य सूखे कचरे का उचित प्रबंधन करना होगा. इस कचरे में प्लास्टिक भी शामिल है. अब यह मान लेना हमारा भोलापन ही होगा कि प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद हो सकता है. चूंकि यह हमारे जीवन में रच-बस चुका है, इसलिए हमें यह व्यवस्था करनी ही होगी कि हम सूखे कचरे को अलग-अलग बांटकर उसका निस्तारण करें. इसका दूसरा पहलू मकानों का मलबा है, जिसे सीऐंडडी (कंस्ट्रक्शन ऐंड डेमोलिशन) कूड़ा कहते हैं, यानी मकानों के निर्माण-कार्य, मरम्मत, तोड़-फोड़ आदि से निकलने वाला मलबा. बड़े-बड़े शहरों में भी इसका ठीक से निस्तारण नहीं होता और नदियों या तालाबों के किनारे इसे डाल दिया जाता है.

पांचवां कारण है, बरसाती पानी की नालियों, यानी ‘स्टॉर्म वाटर ड्रेन’ का अभाव. दिल्ली, गुरुग्राम में ही कई हिस्सों में ऐसी नालियां न होने से सड़कें जलमग्न हो जाती हैं. चूंकि अब तमाम महानगरों में जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक वर्षा होने लगी है, इसलिए हमें ‘स्टॉर्म वाटर ड्रेन’ की तरफ पर्याप्त ध्यान देना होगा.

10 राज्यों में कम बरसे बादल

देश में 10 ऐसे राज्य हैं, जहां कमजोर मॉनसून के कारण सामान्य से कम बारिश हुई है. पूर्वी राज्य बिहार में 33 फीसदी, झारखंड में 43 फीसदी और ओडिशा में 26 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है. असम को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में मॉनसून के बादल कम बरसे. दक्षिण के राज्य केरल और तेलंगाना में भी कम बारिश हुई है.

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