
Delhi Elections: दिल्ली विधानसभा चुनावों के ठीक पहले, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल एक बार फिर अपनी चुनावी घोषणा के साथ सुर्खियों में हैं। आज दोपहर 1 बजे वह बुजुर्गों के लिए एक ‘बड़ी घोषणा’ करने वाले हैं, जिसे लेकर दिल्ली के लोगों में उत्साह और उम्मीदें हैं। हालांकि, इस घोषणा को लेकर सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह केवल एक चुनावी रणनीति है, या फिर यह वास्तव में दिल्ली के बुजुर्गों के लिए एक सच्चा कदम है?
चुनावी स्वार्थ की राजनीति?
बुजुर्गों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए केजरीवाल सरकार ने पहले भी कई योजनाएं शुरू की थीं। वृद्धावस्था पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार जैसी योजनाओं का दावा किया गया था, लेकिन क्या इन योजनाओं का वास्तविक लाभ दिल्ली के बुजुर्गों को मिला? क्या इन योजनाओं को लागू करने में भ्रष्टाचार और व्यवस्था की खामियों ने इन लाभों को केवल कागजों तक ही सीमित नहीं रखा?
केजरीवाल का नया ऐलान क्या सिर्फ चुनावी मौसम में बुजुर्गों के वोट को अपनी ओर आकर्षित करने की एक चाल नहीं है? यह एक दिलचस्प सवाल है, क्योंकि दिल्ली चुनाव के आस-पास हर बार केजरीवाल ऐसे ‘नए वादे’ करते हैं, जो पहले से लागू योजनाओं का ही हिस्सा होते हैं। क्या यह एक सशक्त योजनाबद्ध सुधार है, या केवल चुनावी झांसा देने की कोशिश है?
वास्तविक बदलाव या सिर्फ खोखले वादे?
दिल्ली के बुजुर्गों को पहले भी कई योजनाओं का वादा किया गया था। क्या इन योजनाओं का वास्तविक प्रभाव पड़ा? क्या दिल्ली के वृद्धों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाई हैं, या फिर उन्हें सिर्फ कागजी योजनाओं और प्रचार से ही संतुष्ट किया गया है? यदि केजरीवाल सरकार ने सच में वृद्धों के कल्याण के लिए ठोस कदम उठाए होते, तो क्या उन्हें फिर से चुनावी घोषणाओं की आवश्यकता पड़ती?
अरविंद केजरीवाल का यह ‘नया ऐलान’ दिखाता है कि चुनावी दौर में वह हर वर्ग को खुश करने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह वास्तविक सुधार की दिशा में कदम है, या केवल एक वोट बैंक के रूप में बुजुर्गों को इस्तेमाल करने की सियासी रणनीति?
चुनाव के बाद क्या?
इतिहास गवाह है कि चुनावों के बाद तमाम घोषणाएं और वादे कहीं खो जाते हैं। बुजुर्गों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए यह घोषणा कितनी प्रभावी होगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन केजरीवाल के पिछले कार्यकाल के अनुभव को देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं है कि यह एक और ‘चमकदार वादा’ हो सकता है, जो केवल चुनावी नतीजे आने तक चमकता रहेगा।
आखिरकार, दिल्ली के मतदाता यह समझने में सक्षम हैं कि कौन उन्हें असल में सुविधाएं दे रहा है और कौन सिर्फ चुनावी नाटक कर रहा है। यह जरूरी है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी अब सिर्फ घोषणाओं और वादों से बाहर निकलकर दिल्ली के बुजुर्गों के लिए ठोस और स्थायी सुधारों की दिशा में काम करें, ताकि चुनाव के बाद भी वे उनकी योजनाओं से लाभान्वित हो सकें।