
नई दिल्ली. हाल की भू-राजनीतिक उठापटक की वजह से वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा हो गईं हैं. इसके बावजूद भारत में ईंधन की कीमतें स्थिर हैं. कच्चे तेल की कीमतें लगातार दो हफ्तों तक बढ़ी हैं. यह छह महीने में पहली बार 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गईं हैं. सीरिया में ईरान के दूतावास पर हमले के बाद कीमतों में मौजूदा बढ़ोतरी हुई है. हमले के बाद उपजे राजनीतिक तनाव से दामों में वृद्धि का सिलसिला जारी है.
आदर्श आचार संहिता का जोखिम नहीं
आदर्श आचार संहिता सरकार को कोई नई नीति या राजकोषीय उपाय लाने से रोकती है, लेकिन ईंधन की कीमतों में संशोधन उस श्रेणी में नहीं आता है, इसलिए तेल बाजार कंपनियां तकनीकी रूप से अपनी जरूरत के अनुसार कीमतें बढ़ाने और घटाने के लिए स्वतंत्र होती हैं. साल 2019 में जब देश में चुनाव चल रहा था, तब कुछ मौकों पर कीमतों में मामूली संशोधन हुआ था.
भारत में कीमतों को लेकर अटकलें
वैसे, इसकी संभावना नहीं है कि चुनाव के अंत तक घरेलू पेट्रोल और डीजल की कीमतों में संशोधन किया जाएगा. साल 2010 और साल 2014 के बीच दोनों ईंधन की कीमतों को नियंत्रणमुक्त किया गया था. केंद्र द्वारा 15 मार्च 2024 को 12वीं कटौती की घोषणा करने से पहले मई 2022 से रिकॉर्ड 23 महीनों तक कीमतें स्थिर रहीं. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें आने वाले दिनों में कटौती की किसी भी संभावना को लगभग नकार रही हैं. 2023-24 में तेल कंपनियां बहुत लाभ में रही हैं और उनके पास उछाल झेलने की क्षमता है.
चारों तेल कंपनियों की स्थिति
अमूमन जब कच्चे तेल की कीमतें 85 डॉलर प्रति बैरल पर होती हैं तो तेल कंपनियां बराबरी पर आ जाती हैं. दाम कुछ कम होने पर उनकी लाभप्रदता बढ़ती है और पंप पर कीमतों में कटौती की संभावना बढ़ती है, लेकिन मामूली वृद्धि भी उन्हें घाटे में ला देती है और मूल्य वृद्धि के लिए मजबूर करती है.