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सुप्रीम कोर्ट: आरक्षण केवल पहली पीढ़ी के SC और ST के लिए होना चाहिए

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि किसी भी कैटिगरी में पहली पीढ़ी को ही आरक्षण मिलना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एससी और एसटी में आरक्षण का वर्गीकरण करना उचित विचार है।

अनुसूचित जाति को मिलने वाले 15 फीसदी आरक्षण में भी सब-कोटे को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मंजूरी दी। अदालत ने 6-1 के बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि राज्यों को एससी आरक्षण में भी जातीय आधार पर उसके वर्गीकरण का आधार है। यह आरक्षण उन जातियों के लिए अलग से वर्गीकृत किया जा सकता है, जो पिछड़ी रह गई हों और उनसे ज्यादा भेदभाव किया जा रहा हो। यही नहीं सुनवाई के दौरान जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि किसी भी कैटिगरी में पहली पीढ़ी को ही आरक्षण मिलना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एससी और एसटी में आरक्षण का वर्गीकरण करना उचित विचार है।

जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि इस बात की समीक्षा होनी चाहिए कि आरक्षण मिलने के बाद दूसरी पीढ़ी सामान्य वर्ग के स्तर पर आ गई है या नहीं। यदि ऐसी स्थिति आ जाए तो फिर एक पीढ़ी के बाद आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इस अहम केस की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग में समरूपता नहीं है। इसमें भी विभिन्नताएं हैं। हालांकि 7 जजों की बेंच में अकेले जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की राय अलग थी। उनका कहना था कि अनुसूचित जाति वर्ग को जाति नहीं बल्कि क्लास के आधार पर आरक्षण मिलता है।

जस्टिस मिथल ने बताया- क्यों न मिले दूसरी पीढ़ी को कोटे का लाभ

वहीं जस्टिस मिथल ने कहा कि आरक्षण किसी भी वर्ग में पहली पीढ़ी को ही मिलना चाहिए। इसके बाद दूसरी पीढ़ी को यह लाभ नहीं मिलना चाहिए। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सिस्टम में भेदभाव के चलते एससी और एसटी वर्ग ऊंचाई हासिल नहीं कर सका। लेकिन संविधान का आर्टिकल 14 उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है। उन्होंने कहा, ‘ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि उपेक्षित वर्ग में भी विभिन्नताएं रही हैं और उन्हें अलग-अलग सामाजिक परिस्थितियों में रहना पड़ा है। यदि मध्य प्रदेश की बात करें तो वहां 25 जातियों में से 9 ही एससी में हैं। हमने यह भी देखा है कि इस वर्ग में भी समरूपता नहीं है।’

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जस्टिस गवई ने भीमराव आंबेडकर को भी किया याद
चीफ जस्टिस ने कहा कि यदि कोई समाज उपेक्षित है तो फिर उसके प्रतिनिधित्व को नकारा नहीं जा सकता। इस केस में जस्टिस बीआर गवई ने बीआर आंबेडकर का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आंबेडकर कहते थे, ‘हमें एक सामाजिक लोकतंत्र बनना है। राजनीतिक लोकतंत्र की जरूरत इतनी नहीं है।’ उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति में भी हर वर्ग को अलग-अलग तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘यह कहा जा सकता है कि कोई पार्टी सब-कोटा का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए करेगी, लेकिन मैं सहमत नहीं हूं। असली उद्देश्य तो समानता ही होना चाहिए। बस इस फैसले के लिए उचित अध्ययन जरूर किया जाए।’

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