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पूर्व जजों-राजदूतों ने समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर राष्ट्रपति को हस्तक्षेप करने की मांग उठाई

नई दिल्ली . देश के कई पूर्व जजों व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पत्र लिखकर समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर हस्तक्षेप करने की मांग की है. राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा गया कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करने की कोशिशों से उन्हें धक्का पहुंचा है. अगर इस बात की अनुमति मिल जाती है तो पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.

राष्ट्रपति को पत्र लिखने वाले 120 विशिष्ट लोगों में 16 पूर्व जज व 104 पूर्व नौकरशाह जिनमें सेवानिवृत आईएएस व आईपीएस शामिल हैं. इन सभी ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा कि हमारा समाज समलैंगिक यौन संस्कृति को स्वीकार नहीं करता. विवाह की अनुमति देने पर यह आम हो जाएगी. हमारे बच्चों का स्वास्थ्य और सेहत खतरे में पड़ जाएंगे. इससे परिवार और समाज नाम की संस्थाएं नष्ट हो जाएंगी. इस बारे में कोई भी फैसला करने का अधिकार केवल संसद को ही है, जहां लोगों के प्रतिनिधि होते हैं. अनुच्छेद 246 में विवाह एक सामाजिक कानूनी संस्थान है, जो केवल सक्षम विधायिका द्वारा ही रचित, स्वीकृत और कानूनी मान्यता प्रदान हो सकता है.

पत्र लिखने वालों में महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी प्रवीण दीक्षित प्रयागराज हाई कोर्ट के पूर्व जज कमलेश्वर नाथ, राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व जज आरएस राठौर, पूर्व आइएएस राजीव महर्षि, पूर्व दूतावास विद्या सागर वर्मा, पंजाब के पूर्व डीजीपी पीसी डोगरा, यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह आदि शामिल हैं.

दुनिया भर में सिर्फ 34 देशों में मान्यता

दुनिया भर में केवल 34 देशों ने समान-लिंग विवाहों को वैध बनाया है. इनमें से 24 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से, जबकि 9 ने विधायिका और न्यायपालिका की मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से किया. दक्षिण अफ्रीका अकेला देश है जहां इस प्रकार के विवाहों को न्यायपालिका द्वारा वैध किया गया है. अमेरिका और ब्राजील ने मिश्रित प्रक्रिया को अपनाया था. विधायी प्रक्रिया के माध्यम से समान-लिंग विवाह को वैध बनाने वाले महत्वपूर्ण देश यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, स्पेन, नॉर्वे, नीदरलैंड, फिनलैंड, डेनमार्क, क्यूबा और बेल्जियम हैं.

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