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शादी बचाने की गुंजाइश न हो तो तलाक बेहतर कोर्ट

नई दिल्ली . सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब शादी टूटने के कगार पर हो और उसे बचाने की कोई गुंजाइश न हो तो ऐसे में पति-पत्नी को साथ रखना क्रूरता के समान है. तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की है.

पीठ ने कहा कि परिस्थितियों में निरंतर कड़वाहट, भावनाओं का मृत हो जाना और और लंबे अलगाव को ‘शादी के अपूरणीय टूटने’ के मामले के रूप में माना जा सकता है. जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ ने विवाह विच्छेद के लिए संविधान की अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर यह टिप्पणी की. पीठ ने कहा कि जब विवाह अपूरणीय रूप से टूट (टूटने के कगार) जाता है तो विवाह विच्छेद ही एकमात्र समाधान होता है.

पीठ ने पति की ओर से दाखिल अपील पर विचार करते हुए कहा कि यह विवाह के अपूरणीय टूटने का एक उत्कृष्ट मामला है. शीर्ष कोर्ट ने विवाह विच्छेद को लेकर हाल ही में पारित अपने दो फैसले का हवाला दिया. इसमें एक फैसले में कहा गया था कि शादियां जो एक तरह से टूट चुकी है, को क्रूरता के आधार पर खत्म किया जा सकता है. दूसरे फैसले में कहा गया था कि शादी के अपूरणीय टूटने के आधार पर विवाह विच्छेद को मंजूरी देने के लिए अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल किया जा सकता है.

शीर्ष कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भले ही बच्चों के खातिर, यदि पति-पत्नी दोनों अपने मतभेदों को दूर कर सकें और एकसाथ रहने का फैसला कर सकें, तो इससे अधिक संतुष्टि हमें किसी और चीज से नहीं मिलेगी. अदालत ने कहा कि दोनों पक्ष अपने कठोर रवैये के कारण समझौते का पालन करने में विफल रहे हैं और हमें बड़े अफसोस के साथ यह कहने को मजबूर होना पड़ा है कि अब दोनों एकसाथ नहीं रह सकते. कोर्ट ने कहा कि 12 साल अलग रहने के बाद उन सभी भावनाओं को खत्म करने के लिए काफी लंबी अवधि है जो शायद दोनों के मन में कभी एक-दूसरे के लिए रही होगी.

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