कश्मीरी केसर विश्व भर में अपनी गुणवत्ता के लिए माना जाता है. कश्मीर घाटी में इस वर्ष केसर की खेती में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी देखी जा रही है. केसर की सबसे ज्यादा पैदावार दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के पाम्पोर इलाके में होती है जहां दूर दूर तक खेतों में केसर के जामुनी फूल खिले हुए दिखाई देते हैं. पिछले कुछ वर्षों से लगातार सरकार के संबंधित विभागों के प्रयासों के चलते केसर को एक अलग मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. इसमें एक बड़ा कदम है करीब तीन वर्ष पहले केसर को मिला जीआई (ग्रोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग जिसके चलते न केवल केसर की शुद्धता की गारंटी मिलती है बल्कि किसानों को भी अच्छे दाम मिल रहे हैं. इसके कारण कश्मीरी केसर का उत्पादक काफी खुश है. वहीं सरकार द्वारा केसर की खेती से पर्यटकों को रूबरू कराने के लिए एग्री-टूरिज्म को बढ़ावा देने के भी प्रयास कि ए जा रहे हैं.
इस वर्ष कश्मीर घाटी में केसर की खेती में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी देखी जा रही है. इसके पीछे केसर उत्पादक प्रकृति को एक वरदान मान रहे हैं. उनके अनुसार इस वर्ष समय पर बारिश के साथ-साथ मौसम केसर की बागवानी के लिए अनुकूल रहा. इब्राहिम नबी (23) नामी एक स्थानीय केसर उत्पादक ने कहा कि कश्मीरी केसर दुनिया भर में प्रसिद्ध है और यहां का केसर सबसे महंगा बिकने वाला मसाला है. उन्होंने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस वर्ष अच्छी पैदावार देखने को मिल रही है. इसके पीछे एक कारण यह रहा कि समय पर बारिश हुई और मौसम बागवानी के अनुकूल रहा. इससे हमारी उम्मीदें जाग रही हैं और सरकार को भी किसानों की देखभाल के लिए अच्छे से प्रयास करने चाहिएं.
कश्मीर में केसर के खेत सामान्यत: समुद्र तल से 1600 -1800 मीटर की ऊंचाई पर ही हैं. पांपोर के करेवा(कश्मीर में करेवा उस जमीन को कहते हैं जो अपने आसपास की जमीन से ऊपर उठी होती है, इसे कश्मीर के पठार भी कह सकते हैं) में ही केसर को उगाया जाता है. कश्मीरी केसर को बाजार में सिर्फ ईरान का केसर ही टक्कर दे पाता है, लेकिन सिर्फ कश्मीर के केसर को ही जीआइ चिह्न प्राप्त है. भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा केसर उत्पादक राष्ट्र है जिसके पास जीआइ चिह्न है. इसका फायदा स्थानीय केसर उत्पादकों को हो रहा है. अब सिर्फ देश के विभिन्न राज्यों में ही कश्मीरी केसर की मांग नहीं बढ़ रही है, बल्कि विदेश में भी इसके खरीदार बढ़ रहे हैं. दाम भी सही मिल रहे हैं.
केसर उत्पादक जहां इस वर्ष बंपर पैदावार से खुश हैं वहीं बाजार में जीआई टैग के कारण मिल रहे अच्छे दामों से उनकी खुशी दोगुनी हो गई है. किसानों के अनुसार जीआई टैग से असल और नकल के बीच फरक होती हैं और असल केसर ही देश के विभिन्न बाजारों में पहुंचता है जिससे अब उनको केसर के दामों में बढ़ोतरी मिल रही हैं. सैफरन ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल मजीद वानी ने कहा इस वर्ष अच्छे से समय पर बारिशों के कारण इस बार अच्छी पैदावार हुई है. उन्होंने कहा कि इस बार करीब 30 प्रतिशत पैदावार में बढ़ोतरी हुई है.
पिछले साल 60-70 किलो केसर निकला था
मजीद वानी ने कहा कि सैफरन पार्क के बनने से यहां डुप्लीकेसी ख़त्म हो गई है. मजीद ने कहा कि कश्मीरी केसर को जीआई टैग से एक अलग पहचान मिल चुकी है. इससे हमें दोगुना फायदा हुआ है. पिछले साल हमने करीब 60-70 किलो केसर जमा किया था और उसके अच्छे दाम मिले. करीब 200 रुपए प्रति ग्राम रेट मिला और इस साल उससे अच्छे दाम मिल रहे हैं. मजीद ने कहा कि टाटा ग्रुप ने इस साल करीब 4000 रुपए प्रति किलो फूल ही खरीदे जो करीब 250 रुपए प्रति ग्राम रेट हुआ. उन्होंने कहा कि यह जीआई टैग किसानों के लिए फायदेमंद है.
एग्रो टूरिज्म को भी बढ़ावा दे रही सरकार
वहीं सरकार द्वारा केसर की खेती से पर्यटकों को रूबरू कराने के लिए एग्रो-टूरिज्म को बढ़ावा देने के भी प्रयास किये जा रहे हैं. इसके चलते पाम्पोर में मंगलवार को सैफरन फेस्टिवल का भी आयोजन किया गया था. कृषि विभाग कश्मीर के निदेशक चौधरी मोहम्मद इक़बाल ने कहा, यह कार्यक्रम पाम्पोर के खेतों में पर्यटन विभाग और कृषि विभाग द्वारा केसर के खेतों में आयोजित किया गया. उन्होंने कहा कि इससे एग्री-टूरिज्म को बढ़ावा मिल पाएगा और आगे भी ऐसे प्रयास किए जाने चाहिएं. इस बीच निदेशक ने यह भी कहा कि विभाग केसर के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है. चौधरी ने कहा कि 2010 में 1 हेक्टेयर से 1.8 क्विंटल केसर निकलता था और पिछले साल यही पैदावार 4.92 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पहुंची है और इस साल और बढ़ने की उम्मीद है.
क्या है जीआई टैगिंग ?
जीआई टैगिंग और प्रोसेसिंग की नई तकनीकों की शुरुआत के साथ कश्मीर के केसर की गुणवत्ता दुनिया भर में नंबर वन पर पहुंच गई है. बता दें कि घाटी से केसर की बिक्री को बढ़ावा देने और प्रोसेसिंग के एकमात्र उद्देश्य के लिए एक नया केसर पार्क शुरू किया गया है जहां केसर के सैंपल की जांच की जाती हैं. एक अधिकारी ने बताया कि इसकी शुद्धता को मापने के लिए ऐसे 8 मापदंड हैं जिन पर इन नमूनों का परीक्षण किया जाता है, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है. उन्होंने बताया कि इन 8 मापदंडों में से नमी, बाहरी पदार्थ, विदेशी पदार्थ और कुल राख – तीन मुख्य मापदंड हैं. हम उन्हें ग्रेड देते हैं और फिर हम ई-ऑक्शन करते हैं. यहाँ उन सभी मापदंडों को सहेजते हैं जो कश्मीर के केसर को सर्वश्रेष्ठ ग्रेड प्राप्त करने में मदद करते हैं. कश्मीर का केसर स्पेन और ईरान के केसर से बेहतर माना जाता है.
एक कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि स्पाइस पार्क को बनाने के पीछे यही मक़सद था कि कश्मीरी केसर कीशुद्धता बरकरार रहे. उन्होंने बताया कि केसर के फूलों को इस प्रयोगशाला में भेजा जाता है जहां वैज्ञानिक नई तकनीक से इन्हें संसाधित करते हैं और बेहतरीन गुणवत्ता बनाए रखते हैं. उन्होंने कहा कि इस गुणवत्ता आश्वासन और जीआई टैगिंग के साथ सरकार उत्पादों को सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर बेच सकती है. उन्होंने कहा कि कश्मीरी केसर का जो कम्पोनेंट है वह अरोमा है. यह ईरान और स्पेन के मुकाबले काफी अच्छा है.