100 से ज्यादा कारीगर बना रहे 8 पहियों का विजय रथ;बिरसा उतारनी की हुई रस्म

75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का काम शुरू कर दिया गया है. रथ निर्माण से पहले जगदलपुर के सिरहासार भवन में बारसी उतारनी की रस्म अदा की गई. पुजारियों ने परंपरा अनुसार मोंगरी मछली और बकरे की बलि दी. फिर साल और तिनसा प्रजाति की लकड़ियों की पूजा अर्चना कर रथ निर्माण का काम शुरू कर दिया गया है. इस काम में लगभग 100 से ज्यादा कारीगर जुट गए हैं. इस बार 8 पहियों वाला विजय रथ बनाया जा रहा है.

 हाल ही के कुछ दिन पहले जगदलपुर के सिरहासार भवन में डेरी गड़ाई की रस्म अदा की गई थी. जिसके बाद से दरभा और माचकोट के जंगल से रथ निर्माण के लिए साल और तिनसा प्रजाति की लकड़ियां लाने का काम शुरू कर दिया गया था. 8 पहियों वाले विजय रथ के निर्माण के लिए लगभग 240 पेड़ों को काटकर लकड़ी लाई गई है. जिसे सिरहसार भवन के सामने रखा गया है. बस्तर के झारउरमगांव और बेड़ाउमरगांव के 100 से ज्यादा कारीगर सिरहासार भवन पहुंच गए हैं. जो रथ निर्माण का काम शुरू कर दिए हैं.

बस्तर दशहरे के लिए बनने वाले रथ के लिए कारीगर किसी आधुनिक औजारों का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि पारंपरिक हथियार जैसे कुल्हाड़ी, टंगिया समेत अन्य चीजों का इस्तेमाल करते हैं. जानकार बताते हैं कि, विजय रथ बनाने के लिए लगभग 54 घन मीटर लकड़ी की आवश्यकता होती है. वन विभाग दशहरा समिति को यह लकड़ियां निःशुल्क उपलब्ध करवाता है. हर एक साल के अंतराल में दशहरा के लिए चार और आठ पहियों वाला रथ तैयार किया जाता है. इस साल आठ पहियों वाला रथ बन रहा है. इसे विजय रथ कहा जाता है. यह रथ विजयादशमी और उसके दूसरे दिन खींचा जाएगा. 16 पहियों वाले विशाल रथ को तीन हिस्सों में बांटा गया था. चार पहियों वाला रथ भगवान जगन्नाथ के लिए बनाया गया. वहीं बस्तर दशहरा के लिए दो रथ बनाए गए. जिनमें से एक फूल रथ और दूसरा विजय रथ है.

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