रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने कई योजनाएं लागू की गई है। इससे उनकी आमदनी में वृद्धि होने के साथ ही उनके जीवनस्तर में भी बदलाव हुआ है। छत्तीसगढ़ सरकार अब 65 प्रकार की लघुवनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीददारी करने के साथ ही प्रसंस्करण इकाईयों का निर्माण कर रही है। ताकी वनोपजों का सही मूल्य संग्राहकों को मिलने के साथ ही, लोगों को रोजगार और आय के नए अवसर मिले। इसी पहल का आगे बढ़ाते हुए राज्य शासन की ओर से आज वनांचल पैकेज के अंतर्गत बस्तर संभाग में लघु वनोपज आधारित प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना हेतु दो त्रिपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। पहला समझौता बस्तर बॉटनिक्स प्राइवेट लिमिटेड कुम्हार पारा, बस्तर के साथ कोण्डागांव जिले में महुआ प्रसंस्करण केन्द्र स्थापना के लिए किया गया तथा दूसरा समझौता मेसर्स कोसर एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, पुणे (महाराष्ट्र) के साथ बस्तर जिले में इमली प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना हेतु किया गया।
इस समझौता पत्रक में राज्य शासन की ओर से वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के प्रभुख सचिव श्री मनोज कुमार पिंगुआ, तथा छ.ग राज्य लघु वनोपज संघ के विशेष प्रबंध संचालक श्री एस.एस. बजाज एवं बस्तर बॉटनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के संचालक शुभांक चन्द्राकर तथा मेसर्स कोसर एग्रो प्राइवेट लिमिटेड संचालक कार्तिक कपूर द्वारा हस्ताक्षर किए गए।
समझौते के तहत बस्तर बॉटनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के द्वारा 4 करोड़ रूपए की लागत से कोण्डागांव जिले में महुआ डिस्टिलेशन प्लांट स्थापित किया जायेगा, जिसकी क्षमता 600 किलोलीटर प्रतिवर्ष होगी। इस प्लांट के द्वारा तैयार अधिकांश उत्पाद को अन्य देशों में निर्यात किया जावेगा। इस प्लांट के लगने से बस्तर क्षेत्र में फूड ग्रेड महुआ का उपयोग होगा, जिससे उस क्षेत्र के संग्राहकों को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। इसके अलावा मेसर्स कोसर एग्रो प्राइवेट लिमिटेड द्वारा जिला बस्तर के लोहण्डीगुड़ा विकासखंड के ग्राम छिन्दगांव में 4 करोड़ 30 लाख रूपए की लागत से इमली प्रंसस्करण केन्द्र की स्थापना की जावेगी। इस प्रसंस्करण केंद्र में इमली का पेस्ट, इमली बीज का पावडर तथा इमली ब्रिक्स तैयार किया जायेगा। इस इकाई की वार्षिक क्षमता 4500 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष की होगी। इस प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना से बस्तर इमली का प्रसंस्करण करते हुए तथा उसके बीज का भी उपयोग करते हुए तैयार उत्पादों को देश के बाहर विदेशों में भी विक्रय किया जायेगा। इन दोनों प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना से स्थानीय लोगों को जहां रोजगार प्राप्त होगा, वहीं इमली एवं महुआ के संग्राहकों को उनकी उपज का समुचित मूल्य मिल सकेगा।
उल्लेखनीय है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अधिक से अधिक संख्या में लघु वनोपज प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना के निर्देश दिए हैं। वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ के राज्य लघु वनोपज संघ के द्वारा लघु वनोपज प्रसंस्करण की दिशा में कार्य किया जा रहा है। बड़ी संख्या में स्थानीय महिला स्व-सहायता समूह ‘‘छत्तीसगढ़ हर्बल्स’’ नामक ब्राण्ड के तहत विभिन्न हर्बल उत्पादों का निर्माण कर रही है। इसके साथ ही संघ निजी निवेशकों को भी लघु वनोपज आधारित प्रसंस्करण इकाईयाँ की स्थापना कराने हेतु प्रयासरत हैं। इसके पूर्व भी कॉकेर जिले में कोदो, कुटकी एवं रागी के प्रसंस्करण हेतु निजी निवेशक के साथ समझौता पत्रक हस्ताक्षरित किया जा चुका है। ये समस्त औद्योगिक इकाईयां शीघ्र ही उत्पादन प्रारंभ करेंगी, जिससे प्रदेश में उत्पादित लघु वनोपज का प्रसंस्करण प्रदेश के भीतर ही किया जाना संभव हो सकेगा, जिसका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभ 13 लाख से अधिक तेंदूपत्ता एवं वनोपज संग्राहकों को मिलेगा।