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सूर्य मिशन आदित्य एल-1 मिशन लॉन्च

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज दोपहर 11 बजकर 50 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा  में स्थित अंतरिक्ष केंद्र से भारत के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य-एल1’ (Aditya-L1) को लॉन्च किया. भारत के इस पहले सौर मिशन से इसरो सूर्य का अध्ययन करेगा.

इसरो के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल-1  को अंतरिक्ष में ‘लैग्रेंज प्वाइंट’ यानी एल-1 कक्षा में स्थापित किया जाएगा. इसके बाद यह ये सैटेलाइट सूर्य पर होने वाली गतिविधियों का 24 घंटे अध्ययन करेगा. एल-1 सैटेलाइट को पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर स्थापित किया जाएगा.

आदित्य एल-1 को डीप स्पेस में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (EAS) भी ग्राउंड सपोर्ट देगा. दरअसल गहरे अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यान की सिग्नल काफी कमजोर हो जाती है, इसके लिए कई एजेंसियों की मदद लेनी होती है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने इससे पहले चंद्रयान-3 मिशन के दौरान भी इसरो को ग्राउंड सपोर्ट दिया था.

ईएसए के मुताबिक एजेंसी आदित्य-एल1 को सपोर्ट करेगी. ईएसए आदित्य एल-1 को 35 मीटर डीप स्पेस एंटिना से ग्राउंड सपोर्ट देगा जो यूरोप की कई जगहों पर स्थित है. इसके अलावा ‘कक्षा निर्धारण’ सॉफ़्टवेयर में भी यूरोपियन स्पेस एजेंसी की मदद ली जाएगी. एजेंसी के मुताबिक, “इस सॉफ़्टवेयर के ज़रिए अंतरिक्ष यान के वास्तविक स्थिति की सटीक जानकारी देने में मदद करता है.”

आदित्य-एल1 की ग्राउंड सपोर्ट में यूरोपियन स्पेस एजेंसी सबसे प्रमुख एजेंसी है. ईएसए ने कहा कि वे इस मिशन की लॉचिंग से लेकर मिशन के एल-1 प्वाइंट पर पहुंचने तक सपोर्ट देंगे. साथ ही अगले दो साल तक वे आदित्य एल 1 को कमांड भेजने में भी मदद करेंगे.

मदद की जरूरत क्यों पड़ी?

जब भी कोई अंतरिक्ष यान डीप स्पेस में सफर करता है, तब उसकी सिग्नल काफी कमजोर हो जाती है. ऐसे में कई दूसरी स्पेस एजेंसी की ताकतवर एंटिनाओं की मदद से अंतरिक्ष यान से संपर्क साधा जाता है. इसके अलावा धरती की भौगोलिक स्थिति भी सिग्नल रिसीव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जैसे कई अंतरिक्ष यान से भेजे गए सिग्नल किसी दूसरे देश की सीमा में बेहतर तरीके से काम करते हैं, इसलिए भी विदेशी एजेंसियों की जरूरत बढ़ जाती है.

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