नई दिल्ली। भारत में नॉयज पॉल्यूशन का लेवल लगातार बढ़ रहा है. नेशनल पार्क सर्विस की नेचुरल साउंड रिपोर्ट के मुताबिक, हर तीस साल में नॉयज पॉल्यूशन में तीन गुना तक का इजाफा दर्ज हो रहा है. कोविड के दौरान लगे लॉकडाउन के दौरान ये प्रदूषण काफी कम हो गया था, लेकिन पिछले डेढ़ सालों से स्थिति पहले की तरह होती जा रही है. ध्वनि प्रदूषण पर वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च भी की है, जिसमें पता तला है कि इस प्रदूषण से ब्रेन में कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है.
ड्यूक यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल की प्रोफेसर इम्के कस्ट्रे ने अलग-अलग ध्वनियों पर एक रिसर्च की है. जितना नॉयज का लेवल बढ़ेगा वो हमारी सुनने की क्षमता को कमजोर करेगा और इससे मानसिक तनाव भी होगा, जबकि शांत माहौल में शरीर काफी अच्छा फील करता है. रिसर्च में कहा गया है कि ज्यादा शोर मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए खतरा बन सकता है. अधिक नॉयज पॉल्यूशन से मेंटल हेल्थ पर भी असर पड़ सकता है. शोर के लगाातर बढ़ने से ब्रेन स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्या भी हो सकती है. इससे डिप्रेशन की परेशानी भी होने का खतरा रहता है.
युवाओं के सुनने की क्षमता पर पड़ रहा गंभीर असर
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि नॉयज पॉल्यूशन से स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है. ध्वनि प्रदूषण से भारत में युवा अपनी सुनने की क्षमता खो रहे हैं. भारत में श्रवण यंत्र की जरूरत भी बढ़ गई है. गाडियों के हॉर्न और लाउड म्यूजिक व लाउड ध्वनि प्रदूषण को फैलाने के सबसे बड़े कारण हैं. जिन लोगों की सुनने की क्षमता पहले से ही कम है उनपर भी असर पड़ रहा है. ऐसे लोगों की परेशानी और भी बढ़ती जा रही है. मेट्रो सिटी में ये समस्या ज्यादा बढ़ रही है.
WHO का कहना है कि दुनियाभर में लगभग डेढ़ अरब लोगों के सुनने की क्षमता कम है और नॉयज पॉल्यूशन इस समस्या को तेजी से बढ़ा रहा है. 2030 तक भारत में कम सुनने की क्षमता वाले लोगों का आंकड़ा 13 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है. संगठन के मुताबिक, इस प्रदूषण को रोकने के लिए अगर सख्त कदम नहीं उठाए जाते तो आने वाले समय में ये एक बड़ी समस्या बन सकती है.
कम लोग कराते हैं इलाज
WHO कि रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 10 में से 2 लोग ही सुनने की परेशानी का इलाज कराते हैं. अन्य लोग इस समस्या के साथ ही जीते हैं. ऐसे लोगों की संख्या ग्रामीण इलाकों मे काफी अधिक है.