
सनातन परंपरा में नाग पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. दुनिया भर में तमाम तरह के सांपों की प्रजाति पाई जाती है लेकिन यदि पुराणों की बात करें तो उसमें कहीं पर 78 तो कहीं पर 68 प्रकार के नागों का का उल्लेख मिलता है. इन तमाम नागों में शेषनाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोट, शंखू, कालिया, धृतराष्ट्र आदि नाग का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. देश के विभिन्न हिस्सों में नाग मंदिर हैं, जहां पर नाग देवता की पूजा अलग-अलग मान्यताओं के आधार पर की जाती है. आइए नाग पंचमी पर की जाने वाली नाग पूजा से जुड़ी परंपराओं और मान्यताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं.
क्या महाभारत काल में शुरु हुई नाग पूजा?
नाग देवता से जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई. जिसके अनुसार जब राजा परीक्षित की तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हुई तो उनके पुत्र राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प जाति का सर्वनाश करने का निर्णय लिया और उन्हें समाप्त करने के लिए बड़ा यज्ञ करवाया. जब एक-एक करके नाग उस अग्नि में जाकर खत्म होने लगे तब आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रुकवा कर नागों की रक्षा की थी. मान्यता है कि तभी से नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा की परंपरा प्रारंभ हुई.
नाग पूजा का भगवान कृष्ण से क्या है कनेक्शन?
नागपंचमी के दिन की जाने वाली पूजा को भगवान श्री कृष्ण की लीला से भी जोड़कर देखा जाता है. मान्यता है कि द्वापरयुग में ब्रज क्षेत्र में यमुना कालिया नाग पहुंच गया और लोगों को सताने लगा तो पूर्णावतार माने जाने वाले भगवान श्री कृष्ण ने उसका मर्दन करते हुए उसके फन पर चढ़कर नृत्य किया. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को ब्रज मंडल छोड़कर पाताल लोक जाने का आदेश दिया.