
दिल्ली में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर एक बार फिर तेज हो गया है, और इस बार अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बाबा साहेब आंबेडकर पर दिए गए बयान को मुद्दा बनाते हुए बीजेपी पर निशाना साधा है। हालांकि, केजरीवाल का बयान तथ्यों और सच्चाई से बहुत दूर प्रतीत होता है, और उनकी आलोचनाओं में गंभीर खामियां हैं।
केजरीवाल का आरोप: बिना ठोस आधार के
अरविंद केजरीवाल ने अमित शाह के बयान को बाबा साहेब का अपमान करार दिया, लेकिन उन्होंने बिना किसी स्पष्ट तथ्यों के गृह मंत्री के बयान को “नफरत भरा” कहा। शाह ने अपनी टिप्पणी में आंबेडकर का नाम लिया था, लेकिन केजरीवाल ने इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया और इसे बीजेपी के दलित विरोधी होने के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया। केजरीवाल का यह दावा कि “बीजेपी दलितों और गरीबों से प्यार नहीं करती, उन्हें केवल वोटों से प्यार है” पूरी तरह से निराधार है।
बीजेपी ने हमेशा अपनी नीतियों में दलितों और वंचित वर्गों के कल्याण को प्राथमिकता दी है। इस बात के साक्ष्य हैं कि पार्टी ने विभिन्न योजनाओं के तहत दलितों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का काम किया है। उदाहरण के लिए, बीजेपी सरकार ने दलितों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं, जबकि AAP की योजनाएं केवल वोट बैंक की राजनीति तक सीमित रहती हैं।
AAP का दोगला रवैया: वोट की राजनीति
केजरीवाल ने यह बयान भी दिया कि “बीजेपी नेताओं को झुग्गियों में इसलिए आना पड़ता है क्योंकि बाबा साहेब के संविधान के कारण वे मजबूर हैं,” लेकिन इस बयान में भी उनकी पार्टी की दोगली राजनीति साफ दिखती है। AAP के नेता दिल्ली के गरीबों और झुग्गी बस्तियों का नाम लेकर राजनीति करते हैं, लेकिन जब बात चुनावी रणनीति की आती है, तो उनका असली उद्देश्य केवल वोट बैंक की राजनीति ही होता है।
अगर केजरीवाल और उनकी पार्टी सच में बाबा साहेब के विचारों को मानते हैं, तो उन्हें उन वादों और नीतियों को लागू करना चाहिए, जो समाज के निचले तबके के लिए होते हैं। लेकिन उनकी सरकार की योजनाओं में सच्चे सुधार की कोई झलक नहीं मिलती। बल्कि, उनकी नीतियां वोटों के लिए हर वर्ग को दांव पर लगाती हैं।
सच्चाई: AAP की छवि पर सवाल
केजरीवाल ने यह दावा भी किया कि उनकी सरकार ने हर सरकारी दफ्तर में बाबा साहेब और भगत सिंह की तस्वीरें लगवाने का आदेश दिया है, जबकि वास्तविकता यह है कि AAP की सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है जो समाज के कमजोर वर्ग के लिए काम करे। उनका घोषणापत्र केवल चुनावी फायदा उठाने के लिए तैयार किया गया है।
असली सवाल यह है कि जब केजरीवाल खुद को बाबा साहेब का अनुयायी बताते हैं, तो क्यों उनकी सरकार ने दिल्ली में गरीबों और वंचितों के लिए कोई ठोस सुधार नहीं किया? क्यों उनकी पार्टी के नेता चुनावी लाभ के लिए बाबा साहेब का नाम लेकर अपने राजनीतिक फायदे को बढ़ावा देते हैं?
नतीजा: बीजेपी से झूठी तुलना
केजरीवाल का यह बयान कि “जो बाबा साहेब से प्यार करता है, वह बीजेपी से इनकार करता है,” बिल्कुल बेबुनियाद है। यह एक सस्ती राजनीति है, जिसका मकसद केवल अपने विरोधियों को बदनाम करना है। अगर सच में केजरीवाल बाबा साहेब के विचारों का पालन करते हैं, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि बाबा साहेब का असली योगदान समाज के प्रत्येक वर्ग के उत्थान में था, न कि केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए उनकी नीतियों का इस्तेमाल करना।
केजरीवाल को यह समझना होगा कि उनका यह बयान केवल बीजेपी को निशाना बनाने के लिए था, और इसमें बाबा साहेब के विचारों का कोई सम्मान नहीं है।