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कैंसर को मात देगी छत्तीसगढ़ की संजीवनी, जनवरी 2026 से होगा ह्यूमन ट्रायल

छत्तीसगढ़ के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक अनोखी और उम्मीद जगाने वाली खोज की है। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. दीपक शर्मा और रिसर्च स्कॉलर सलाखा जॉन ने भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर (BARC) के रेडिएशन बायोलॉजी एंड साइंस विभाग के साथ मिलकर धान की एक दुर्लभ किस्म ‘संजीवनी’ पर वर्ष 2016 से रिसर्च की शुरुआत की थी।

लगभग नौ वर्षों की इस गहन शोध के शुरुआती परिणाम चौंकाने वाले रहे हैं। सबसे पहले चूहों पर किए गए परीक्षणों में पाया गया कि संजीवनी धान से बने चावल में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ने के प्राकृतिक गुण मौजूद हैं। इन निष्कर्षों को सेंट्रल ड्रग रिसर्च सेंटर (CDRI) ने भी प्रमाणित किया है, जिससे शोध की विश्वसनीयता को बल मिला है।

डॉ. दीपक शर्मा ने जानकारी दी कि अब यह रिसर्च अपने सबसे अहम चरण में प्रवेश कर रही है। वर्ष जनवरी 2026 से टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल, मुंबई में इस धान की किस्म से बने चावल का मेडिसिनल ह्यूमन ट्रायल शुरू किया जाएगा। यह भारत में जैविक खाद्य पदार्थों पर आधारित कैंसर उपचार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

संजीवनी धान की खासियत यह है कि इसमें प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट्स और बॉडी सेल्स को पुनर्जीवित करने वाले पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए गए हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ ही कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को भी धीमा करने में सहायक साबित हो सकता है।

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दिलचस्प तथ्य यह है कि यह धान की किस्म मूल रूप से छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सुकमा जिले में पाई जाती थी। दुर्भाग्यवश, समय और आधुनिक खेती की बदलती प्रवृत्तियों के कारण यह किस्म बिलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी थी। इसे संरक्षण और पुनर्विकास की दिशा में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के जेनेटिक एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग ने दोबारा विकसित किया है।

डॉ. शर्मा के अनुसार, संजीवनी किस्म पर वर्षों तक किए गए जेनेटिक विश्लेषण, पौष्टिक मूल्यांकन और बायोलॉजिकल इफेक्ट्स के परीक्षण के बाद यह निष्कर्ष सामने आया है कि यह चावल न केवल पोषण के लिए श्रेष्ठ है, बल्कि इसे भविष्य में कैंसर के सहायक उपचार के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है।

इस खोज से छत्तीसगढ़ का नाम वैश्विक मेडिकल और कृषि अनुसंधान मानचित्र पर एक नई ऊंचाई पर पहुंचा है। यदि मानव परीक्षण सफल होता है, तो भारत ‘खाद्य आधारित चिकित्सा’ के क्षेत्र में विश्व को नई दिशा दे सकता है।

राज्य सरकार और कृषि विज्ञान समुदाय इस खोज को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं और इसे भविष्य में बस्तर अंचल के किसानों के लिए नए आर्थिक अवसर के रूप में भी देखा जा रहा है। इसके उत्पादन और वितरण को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं तैयार की जा रही हैं।

इस प्रकार, संजीवनी धान न केवल छत्तीसगढ़ की विरासत को पुनर्जीवित कर रहा है, बल्कि मानवता के लिए एक नई संजीवनी बनने की दिशा में भी अग्रसर है।

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