
नेपाल में युवाओं और छात्रों के आंदोलन को आक्रामकता से दबाने की कोशिश प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भारी पड़ गई और आखिरकार, उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी। काठमांडो की सड़कों पर प्रदर्शन शुरुआत में शांतिपूर्ण ही था पर प्रदर्शनकारी कुछ ही देर में अराजक हो गए। इसकी एक बड़ी वजह यह भी थी कि सरकार की तरफ से प्रदर्शनकारियों पर घातक बल प्रयोग किया गया। आंसू गैस, रबर बुलेट के बाद सुरक्षा कर्मियों ने फायरिंग से भी परहेज नहीं किया।
पीएम ओली ने हिंसा के लिए घुसपैठियों को जिम्मेदार ठहराया और जांच समिति गठित करने का आदेश दिया। प्रदर्शन शुरू होने के बाद पहले तो ओली ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटाने से इन्कार कर दिया और कहा कि वह उपद्रवियों के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, सोमवार देर रात उन्हें प्रतिबंध हटाने का फैसला करना पड़ा। नेपाल पिछले कुछ समय से गहरी निराशा से ग्रस्त है। इस साल मार्च में देशभर में राजशाही समर्थक प्रदर्शनों में दो लोगों की मौत हो गई थी। इन प्रदर्शनों ने राजशाही की वापसी के लिए बढ़ते समर्थन को रेखांकित किया। लेकिन, कहीं न कहीं लोगों की नाराजगी राजनीतिक व्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी को लेकर भी थी। ऐसे में सरकार ने जब 4 सितंबर को 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पाबंदी लगाई तो गुस्सा और भड़क उठा।





