
दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) का मामला लगातार जटिल होता जा रहा है, जहां DMRC और बैंकों के कंसोर्टियम के बीच “मुफ्त यात्रा” का मुद्दा तूल पकड़ रहा है। यह मामला विशेष रूप से दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो लाइन से जुड़ा है, जिसे 2013 से DMRC चला रहा है और राजस्व कमा रहा है। हालांकि, इस प्रोजेक्ट के लिए बैंकों से ली गई लागत का पूरा भुगतान अब तक नहीं हुआ है।
मुख्य विवाद:
- अदायगी का मुद्दा:
- DMRC को अभी भी ₹600 करोड़ का भुगतान करना बाकी है, जबकि ₹2600 करोड़ पहले ही चुकाए जा चुके हैं।
- 2013 में DAMEPL (दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड) ने सुरक्षा और तकनीकी मुद्दों के कारण लाइन DMRC को सौंप दी थी।
- बैंकों का दावा है कि DMRC ने ट्रेनों का उपयोग किया और राजस्व अर्जित किया, लेकिन वित्तपोषण लागत चुकाने में असफल रहा।
- कानूनी संघर्ष:
- 2017 में एक आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल ने DAMEPL के पक्ष में ₹2,782 करोड़ का निर्णय दिया था।
- DMRC ने सुप्रीम कोर्ट में इस निर्णय को चुनौती दी और “सार्वजनिक हित” के आधार पर राहत प्राप्त की।
- अब बैंकों का कंसोर्टियम जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की योजना बना रहा है।
- बैंक और DMRC का तर्क:
- बैंकों का कहना है कि वे सार्वजनिक धन के संरक्षक हैं और DMRC को उनकी वित्तपोषण लागत चुकानी चाहिए।
- DMRC का दावा है कि ट्रेनों की कीमत और अन्य देनदारियां DAMEPL या रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की जिम्मेदारी नहीं हैं।
अहम बिंदु:
- DMRC को पहले ही सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल चुकी है, लेकिन यह राहत बैंकों की वित्तीय मांगों को नहीं कवर करती।
- ट्रेनों और मेट्रो लाइन की कुल लागत ₹8,000 करोड़ से अधिक है।
- जनवरी में बैंकों की ओर से नई याचिका DMRC की मुफ्त सेवाओं और लंबित भुगतान पर ध्यान केंद्रित करेगी।
भविष्य की संभावनाएं:
- यदि सुप्रीम कोर्ट बैंकों के पक्ष में निर्णय देता है, तो DMRC को बड़ी धनराशि चुकानी पड़ सकती है।
- यह मामला दिल्ली मेट्रो की वित्तीय स्थिति और संचालन क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।
इस विवाद का परिणाम न केवल DMRC की कार्यप्रणाली बल्कि भविष्य की सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजनाओं पर भी गहरा असर डाल सकता है।