
छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर में स्थित श्री दूधाधारी मठ तथा इससे संबंधित श्री जैतुसाव मठ, श्री शिवरीनारायण मठ, श्री राजीव लोचन मठ राजिम सहित सभी मठ मंदिरों में निर्जला एकादशी का व्रत श्रद्धा भक्ति पूर्वक मनाया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रत्येक वर्ष के जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। व्रत को धारण करने वाले श्रद्धालु भक्तों को उनकी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। निर्जला एकादशी के महत्व के संदर्भ में श्री दूधाधारी मठ पीठाधीश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज ने कहा कि -वर्ष के बारह महीने में कुल चौबीस एकादशी होते हैं। इनमें से प्रत्येक एकादशी का अपना- अपना महत्व है किंतु निर्जला एकादशी का अपना एक अलग ही विशेष महत्व है कारण कि जो साधक भक्तजन यदि किसी कारणवश वर्ष के अन्य एकादशी के व्रत का पालन ना कर सके हों और यदि उन्होंने केवल निर्जला एकादशी के व्रत का नियम पूर्वक पालन कर लिया हो तो उन्हें सभी एकादशी के फल की प्राप्ति इस निर्जला एकादशी से होती है, ऐसा शास्त्रीय विधान है। उन्होंने कहा कि- एकादशी के व्रत को धारण करने वाले श्रद्धालुओं को अपने घरों में भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर स्थापित करके दीप प्रज्वलित कर पुष्प, फल ,अक्षत, चंदन आदि से विधिवत पूजन करके भगवान की स्तुति करनी चाहिए। बांकी समय में हरि नाम का सुमिरन, चिंतन एवं जाप करनी चाहिए। रात्रि में घर में रामायण या कीर्तन भजन का आयोजन करें तो और बहुत अच्छा है। इस व्रत को धारण करने से भगवान श्री हरि की कृपा अपने भक्तों पर निरंतर बनी रहती है। उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति तो होती ही है इससे जीवन के लिए मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। एकादशी के दिन व्रत धारण करने वालों को अन्ना से परहेज करना चाहिए। द्वादशी को ब्राह्मणों को दान करना पुण्य वर्धक माना गया है। उल्लेखनीय है कि श्री दूधाधारी मठ रायपुर,श्री शिवरीनारायण मठ सहित सभी मठ मंदिरों में संत महात्माओं ने अनवरत भजन पूजन करके निर्जला एकादशी का व्रत धारण किया है।