
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए भाजपा उम्मीदवारों की पहली सूची आने के बाद बाकी बची सीटों को लिए टिकट के दावेदारों की बेचैनी बढ़ने लगी है. सबसे ज्यादा बेचैनी मौजूदा विधायकों में हैं, जिनको अभी तक साफ नहीं है कि टिकट मिलेगा भी या नहीं. इनमें वह विधायक भी शामिल है जो बीते चुनाव के बाद दूसरे दलों से आए हैं. राजस्थान के लिए तो अभी तक एक भी उम्मीदवार का नाम तय नहीं हुआ है.
भाजपा ने इस बार अपनी चुनावी रणनीति में कमजोर सीटों को सबसे उपर रखा है, चाहे वह विधानसभा चुनाव हों या आम चुनाव की तैयारी. यही वजह है कि पार्टी विधानसभा चुनावों के लिए संबंधित राज्यों में सबसे पहले हारी हुई सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम तय कर रही है. मध्य प्रदेश में ऐसी 39 सीटों और छत्तीसगढ़ में 21 सीटों के लिए उम्मीदवार तय कर चुकी है. राजस्थान में ऐसी सीटों को लेकर चर्चा चल रही है और जल्द ही वहां के लिए भी कुछ सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए जा सकते हैं. हालांकि वहां पर नेतृत्व को लेकर उहापोह के चलते इस काम में देरी हो रही है.
भाजपा ने चुनावों की घोषणा के काफी पहले कुछ सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर सभी को चौंका दिया था. इसके लिए पार्टी ने पूर्व निर्धारित कर प्रक्रियाओं को भी नजरंदाज किया था. जिन नेताओं को टिकट मिल गया है उन्होंने अपना प्रचार भी शुरू कर दिया है. इन सीटों पर जनसंपर्क के साथ सामाजिक समीकरण भी संभाले जा रहे है और कार्यकर्ताओं में भी सक्रियता आई है. सूत्रों के अनुसार कुछ नेता काफी संभल कर चल रहे है कि कहीं चुनावों की घोषणा और नामांकन ऐसा कोई मुद्दा न आ जाए कि टिकट बदल जाए.
इस बीच सबसे ज्यादा बेचैनी मौजूदा विधायकों में हैं. जिन पर जनता के बीच कामों का दबाब तो ज्यादा है ही साथ ही यह साफ नहीं है कि उनको दोबारा टिकट मिलेगा या नहीं.
लोकसभा की कमजोर सीटों की समीक्षा बैठक
भाजपा नेतृत्व विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनावों की भी तैयारी कर रहा है. उसने वहां पर भी हारी हुई और कमजोर सीटों को अपनी वरीयता पर रखा है. पार्टी ने ऐसी लगभग 160 सीटों की सूची तैयार की है, जिन पर वह सघन अभियान चलाकर उनको मजबूत करने में जुटी है. इन सीटों पर विभिन्न केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता कई दौर के लंबे प्रवास कर चुके हैं. अब एक सितंबर को पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में इसकी समीक्षा बैठक होगी.