
महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने 10 फीसदी मराठा आरक्षण को मंजूरी दे दी है. मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा के स्पेशल सेशन में एकनाथ शिंदे कैबिनेट से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई. इसके तहत राज्य में मौजूद 28 फीसदी मराठा समुदाय के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण सरकारी नौकरियों में दिया जाएगा. इसके अलावा इतना ही रिजर्वेशन उच्च शिक्षण संस्थानों में भी देने का प्रस्ताव है. बीते एक दशक में यह तीसरा मौका है, जब महाराष्ट्र में इस तरह का बिल मराठा समुदाय के लिए मंजूर किया गया है.
यह प्रस्ताव महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के आधार पर लाया गया है. आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 28 फीसदी आबादी मराठा समुदाय की है. इसके अलावा मराठा समुदाय को लेकर माना गया है कि उसके पिछड़ेपन की कुछ असाधारण वजहें हैं. ऐसे में इस वर्ग को आरक्षण देने के लिए जातिगत आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को पार किया जा सकता है. महाराष्ट्र में 10 फीसदी आरक्षण EWS को भी दिया जा रहा है. इसे मिलाकर अब तक राज्य में 62 फीसदी कोटा दिया जा रहा है. इस तरह यदि मराठा आरक्षण को भी मिला लिया जाए तो राज्य में कुल कोटा 72 फीसदी का हो जाएगा.
महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन दिसंबर में रिटायर्ड जज सुनील शुकरे के नेतृत्व में किया गया था. इसका उद्देश्य यह था कि राज्य में मराठा समुदाय के पिछड़ेपन का अध्ययन किया जाए. मराठा कोटे की मांग करने वाले आंदोलनकारी मनोज जारांगे पाटिल के नेतृत्व में लंबा आंदोलन चला था. इसके बाद ही सरकार ने आयोग का गठन किया. महाराष्ट्र में पेश इस बिल में मराठा कोटे का प्रस्ताव रखते हुए कहा गया है कि तमिलनाडु में 69 फीसदी का आरक्षण मिल रहा है. इस बिल में इंदिरा साहनी मामले का भी जिक्र किया गया, जिसमें तमिलनाडु के केस को अपवाद माना गया था.
बता दें कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने 1.58 लाख परिवारों का राज्य भर में सर्वे किया है. उसके बाद मराठा समुदाय के पिछड़े होने के संबंध में रिपोर्ट पेश की गई. रिपोर्ट में कहा गया कि मराठा समुदाय के 21.22 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बस कर रहे हैं, जबकि राज्य का औसत 17.4 फीसदी ही है. इसके अलावा राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों में 94 फीसदी मराठा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले होते हैं.