
नई दिल्ली . सुप्रीम कोर्ट ने नफरती भाषण के मामलों में सभी राज्यों को तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब भी कोई ऐसा भाषण देता है तो सरकारें बिना किसी शिकायत के ही एफआईआर दर्ज करें.
जस्टिस केएम जोसफ की पीठ ने नफरत फैलाने वाले भाषणों को गंभीर अपराध बताया. उन्होंने कहा कि इससे देश के धार्मिक ताने-बाने को नुकसान पहुंच सकता है. मामले में अगली सुनवाई 12 मई को होगी.
आदेश का दायरा बढ़ाया पीठ ने कहा कि उसका 21 अक्तूबर, 2022 का आदेश तीन राज्यों से आगे बढ़ाते हुए सभी राज्यों के लिए प्रभावी रहेगा. शीर्ष अदालत ने पहले यूपी, दिल्ली और उत्तराखंड को निर्देश दिया था कि घृणा फैलाने वाले भाषण देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए. तब शीर्ष अदालत ने कहा था, धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक पत्रकार की याचिका पर आया है, जिन्होंने याचिका दाखिल कर नफरती बयान देने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी.
शीर्ष अदालत ने 29 मार्च को इसी मामले से जुड़े एक अवमानना याचिका में महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था. इसमें आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार रैलियों के दौरान नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रही.
केस दर्ज करने में देरी को अवमानना माना जाएगा
पीठ ने शुक्रवार को कहा, न्यायाधीश अराजनीतिक होते हैं. पहले पक्ष या दूसरे पक्ष के बारे में नहीं सोचते और उनके दिमाग में केवल एक ही चीज है-भारत का संविधान. शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी कि इस बहुत गंभीर विषय पर कार्रवाई करने में प्रशासन की ओर से देरी को अदालत की अवमानना माना जाएगा.