
गाड़ियों में उपयोग की जाने वाली सीएनजी और रसोई में इस्तेमाल होने वाली पीएनजी फिर महंगी हो सकती है. इन गैसों के आयात का खर्च बढ़ने के चलते सरकार दाम बढ़ाने पर विचार कर सकती है. भारत को अभी महंगी गैस का आयात करना पड़ रहा है जिससे नेचुरल गैसों के दाम पर बड़ा खर्च हो रहा है. इस खर्च को पाटने के लिए घरेलू स्तर पर सीएनजी और पीएनजी के दाम में बढ़ोतरी हो सकती है. नेचुरल गैस की सप्लाई के लिए रूसी कंपनी गाजप्रोम और भारत के साथ 20 वर्षों का करार हुआ था. यह डील 2018 से चली आ रही है. लेकिन इस साल रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते मई के बाद गैस की सप्लाई नहीं हो सकी है.
हाल के दिनों में रूस से भारत की गैस सप्लाई बंद हो गई है जिसके चलते भारत अन्य देशों से महंगी कीमत पर नेचुरल गैस खरीद रहा है. देश में गैस का काम करने वाली सरकारी कंपनी गेल इंडिया ने अक्टूबर-नवंबर के लिए दोगुनी कीमत पर विदेशों से गैस की खरीदारी की है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया के कई देशों में गैसों की भारी किल्लत हो गई है. जिन देशों को गैस आयात करनी होती है, वे उत्पादक देशों से भारी कीमतों पर गैस खरीद रहे हैं. अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनका घरेलू काम प्रभावित होगा. गाड़ियां बंद हो जाएंगी, रसोई में खाना नहीं बन पाएगा और यहां तक कि कल-करखाने पर बंद हो सकते हैं.
भारत में अगस्त में खुदरा महंगाई बढ़कर 7 फीसद पर पहुंच गई है जिसमें एक बड़ा रोल गैस की बढ़ती कीमतों का भी है. गैसों की सप्लाई कब तक सामान्य होगी नहीं कहा जा सकता क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध रुकने तक यही स्थिति बनी रहेगी. गेल इंडिया ने अक्टूबर-नवंबर के लिए गैसों की कीमत 40 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट तक चुकाया है. यह सप्लाई दुनिया के सबसे महंगे कारगो में से एक है. रूसी कंपनी गाजप्रोम के साथ 20 साल के लिए गैस सप्लाई का करार हुआ था, लेकिन जो कंपनी इस सप्लाई को देखती है वह जर्मनी के हाथों में चली गई है. यह नई कंपनी रूस के यमाल क्षेत्र से गैस की सप्लाई नहीं कर पा रही क्योंकि रूस और जर्मनी के बीच समीकरण बिगड़े हुए हैं. यह कंपनी भारत के लिए गैस सप्लाई नहीं कर रही है. इससे भारत में स्थिति बिगड़ गई है.