
लोकसभा चुनाव में अब छह महीने ही बाकी हैं लेकिन सीट बंटवारे के मसले पर राजनीतिक दलों में कोई सुगबुगाहट नहीं है. विपक्षी दलों की कौन कहे, केंद्र की सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में भी सीट बंटवारे के मसले पर कोई औपचारिक बातचीत शुरू नहीं हो सकी है.
पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार बिहार में एनडीए का राजनीतिक समीकरण भिन्न है. 2019 लोकसभा चुनाव भाजपा ने जदयू के साथ लड़ा था. इस बार जदयू महागठबंधन के साथ है तो भाजपा के साथ कुछ नए दल जुड़ चुके हैं. रालोजपा व लोजपा (रामविलास) जैसे पुराने सहयोगियों के साथ हम (जीतन राम मांझी) और रालोजद (उपेन्द्र कुशवाहा) भी भाजपा के साथ आ गया है. 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा ने इसी समीकरण (हम को छोड़कर) के आधार पर लड़ा था. ऐसे में अब भाजपा के सहयोगी दलों को सीटों की संख्या को लेकर चिंता खाए जा रही है. सभी दलों को लग रहा है कि उनके खाते में न जाने कितनी सीटें आएंगी.
भाजपा के साथ मिलकर हम पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना चुका है. उपेन्द्र कुशवाहा 2014 की तुलना में तीन से अधिक सीटें मिलने की उम्मीद पाले हुए हैं. लोजपा को 2014 में सात और 2019 में छह सीटें मिली थीं. इस बार चाचा-भतीजा (केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस-चिराग पासवान) की जोड़ी अलग-अलग दावे कर रही है. हाजीपुर सीट को लेकर भी दोनों की दावेदारी है.