
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग भारत और दुनिया के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है. यह सफलता जहां भारत के चंद्रमिशन कार्यक्रम को अगले चरण की ओर ले जाएगी, जिसमें चांद पर पहुंचकर वहां के नमूने लेकर वापस धरती पर लौटना शामिल है, वहीं अमेरिका के आर्टेमिस-3 मिशन के मागर्दशन का कार्य भी करेगी. तीसरे, यह मिशन चांद के कुछ और रहस्यों से भी पर्दा हटा सकता है.
सरकार से जुड़े सूत्रों के अनुसार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों को जल्द ही चंद्रयान-4 की तैयारी के लिए हरी झंडी मिल सकती है. इसमें भारत चंद्रविजय अभियान में एक और कदम आगे बढ़ाएगा. इसमें चंद्रमा पर साफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर को वापस धरती पर लाने के प्रयास होंगे. यानी रोवर नमूने लेकर धरती पर लौटेगा. चंद्रयान-3 के जरिये भारत ने चांद के उस हिस्से में दस्तक देने में सफलता हासिल की है, जहां अभी तक चांद पर विजय पाने वाले अमेरिका, रूस और चीन के अभियान नहीं पहुंचे. लेकिन अगर इन तीनों देशों की बात करें तो ये अपने मिशन को चांद पर भेजकर वापस नमूने लेकर धरती पर लौटने में भी सफल हो चुके हैं. अमेरिका के बाद रूस ने 1976 में ही यह सफलता हासिल की थी तो चीन इसमें 2020 में सफल हुआ था. इसलिए भारत का अब अगले कदम चांद से नमूने लेकर वापस लौटने का होना तय माना जा रहा है. इसरो ने पहले चरण में चंद्रमा के ऊपर उपग्रह भेजा और दूसरे चरण में चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की. तीसरा चरण चांद से नमूना लेकर वापस का होगा. इसके आगे का चौथा चरण चांद पर इंसान को भेजने का ही बचता है. यह क्षमता भारत तीसरे चरण से हासिल कर लेगा.
अमेरिका चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 2025-26 में अभियान भेजने की तैयारी कर रहा है. निश्चित रूप से उसका यह मिशन नमूना वापसी का होगा. हो सकता है इंसान भी भेजे. लेकिन उससे पहले चंद्रयान-3 के जरिये दक्षिणी ध्रुव से प्राप्त होने वाली जानकारी अमेरिकी मिशन के लिए भी मार्गदर्शन का कार्य करेगी. चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान से मिलने वाले आंकड़े अमेरिकी मिशन की राह भी प्रशस्त करेंगे. दक्षिणी ध्रुव शोध के लिए महत्वपूर्ण है. क्योंकि यहां तापमान -200 डिग्री से लेकर 54 डिग्री सेल्सियस तक होने की संभावना है. गहरे गड्ढे हैं जिन पर शोध चांद के नए रहस्यों से पर्दा हटा सकता है.
इसरो से करार को इच्छुक कई देश
सूत्रों के अनुसार कई देश चंद्रमिशन कार्यक्रम शुरू करने की तैयारियों में जुटे हैं. ये देश इसरो के साथ करार करने के इच्छुक हैं. ये देश चाहते हैं कि भारत की क्षमताओं का लाभ उठाकर वह अपने चंद्रमिशन कार्यक्रम शुरू करेंगे. इससे चंद्रमिशन कार्यक्रम में भारत को वैश्विक नेतृत्व का अवसर भी मिलेगा.