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मायावती को ‘इंडिया’ के साथ लाने की मुहिम तेज

लोकसभा चुनाव में एकजुट होकर भाजपा का मुकाबला करने के लिए इंडिया गठबंधन के घटकदल सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. कांग्रेस की गठबंधन समिति घटकदलों के साथ अलग-अलग चर्चा कर रही है. इस बीच, कांग्रेस ने बसपा के गठबंधन में आने की हिमायत कर प्रदेश की सियासत का पारा बढ़ा दिया है.
कांग्रेस महासचिव और प्रभारी अविनाश पांडे मानते हैं कि भाजपा को शिकस्त देने के लिए समान विचारधारा वाली सभी पार्टियों का एकजुट होना चाहिए. पर, सपा को यह मंजूर नहीं है. यही वजह है कि सपा इंडिया गठबंधन की बैठक और उसके बाद लगातार बसपा पर हमलावर है. वहीं, बसपा भी जवाब देने में कोई रियायत नहीं बरत रही है.
ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि कांग्रेस आखिर क्यों बसपा को गठबंधन में शामिल करना चाहती है. इसके कई कारण हैं. पहला यह कि बसपा के गठबंधन में आने से एनडीए के खिलाफ एक सीट से विपक्ष के एक उम्मीदवार की परिकल्पना साकार हो सकती है. वहीं, इससे अहम बसपा का वोट प्रतिशत है.
बसपा के रुख को सकारात्मक मान रही कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस लोकसभा में सपा के मुकाबले बसपा के साथ गठबंधन को ज्यादा फायदेमंद मानती है. उनका मानना है कि गठबंधन को सवर्ण मतदाता भी वोट कर सकते हैं. कांग्रेस बसपा के रुख को सकारात्मक मान रही है.
बसपा के पास 20 वोट
2019 के लोकसभा चुनाव सपा-बसपा ने गठबंधन में लड़ा था. इस चुनाव में बसपा 19.4 वोट के साथ दस और सपा को पांच सीट मिली थी. कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीत पाई थी. इसकी वजह है प्रदेश में 21 दलित मतदाता हैं और चुनाव में दलित मतदाताओं की पहली पसंद बसपा है.
उत्तर प्रदेश चुनौतीपूर्ण
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है. वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-सपा के बीह गठबंधन का भी फायदा नहीं हुआ. इन चुनाव में 114 सीट पर चुनाव लड़कर पार्टी सात सीट हासिल कर पाई, जबकि 2012 के चुनाव में 28 सीट पर जीत दर्ज की थी.
ऐतराज नहीं
प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि बसपा अकेले मैदान में उतरने का दम भर रही है, पर कांग्रेस के साथ गठबंधन की अटकलों पर कोई टिप्पणी नहीं है. जबकि सपा की टिप्पणियों पर मायावती खुद जवाब दे रही हैं. ऐसे में बसपा को शायद गठबंधन का हिस्सा बनने पर ऐतराज नहीं है.

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