नई दिल्ली. उच्च न्यायालय ने हत्या के प्रयास मामले में दोनों पक्षों के समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया. पीठ ने कहा कि आपराधिक कानून समाज में व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित करने का प्रयास करता है. मुआवजे के भुगतान से कोई अपराध खत्म नहीं हो जाता.
न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने आरोपियों की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) जैसा गंभीर अपराध दोहराया नहीं जाए. साथ ही, समझौता अधिक आपराधिक कृत्यों को बढ़ावा न दे या बड़े पैमाने पर समाज के कल्याण को खतरे में न डाले.
पीठ ने एक आदेश में कहा कि वर्तमान मामले में एक छोटी सी बात पर याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी नंबर तीन के शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से पर चाकू से वार किया गया था. केवल इसलिए कि प्रतिवादी नंबर तीन को समझौते के बाद मुआवजा दिया गया था. यह कार्यवाही को रद्द करने का समुचित आधार नहीं हो सकता.