जयपुर, 21 अगस्त ऐसे समय में जब मौजूदा केंद्र सरकार संस्कृत को अपने मुख्य एजेंडे के रूप में प्रचारित कर रही है, नवोदय विद्यालयों में प्राचीन भाषा अनुपलब्ध है, जिसके कारण राजस्थान में छात्र इन स्कूलों में अन्य क्षेत्रीय भाषाओं जैसे मराठी, गुजराती आदि सीख रहे हैं, भले ही उनमें से कई संस्कृत सीखने को उत्सुक हैं.
दरअसल, केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत चलाए जा रहे इन प्रतिष्ठित स्कूलों में क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षकों की भर्ती के लिए हाल ही में हुई घोषणा में भी संस्कृत भाषा को कोई नहीं मिली है, जिससे संस्कृत के विद्वान नाराज हैं.
अधिकारियों ने बताया, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा बोडो, असमिया, गारो, खासी, कन्नड़, मराठी, मिजो, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल तेलुगु, उर्दू आदि भाषाओं के लिए शिक्षकों के लिए अवसर हैं, लेकिन संस्कृत को अभी तक इस सूची में जगह नहीं मिली है. यह साबित करता है कि इन स्कूलों में संस्कृत भाषा लाने की केंद्र सरकार की तत्काल कोई योजना नहीं है.
जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के सहायक प्रोफेसर कोसलेंद्र दास ने कहा, “संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की नींव है. यदि सरकार भारतीय साहित्य को बढ़ावा देने की इच्छुक है, तो संस्कृत भाषा का प्रचार और संरक्षण सर्वोपरि है.”
उन्होंने सवाल किया कि यदि आप प्रारंभिक स्तर पर संस्कृत को नष्ट कर देते हैं तो आप बांग्ला, राजस्थानी, मलयाली, कन्नड़, गुजराती या किसी अन्य भाषा में विदेशी भाषाओं से आने वाले नए शब्द कैसे बनाएंगे.
क्या संस्कृत को बचाना भारत सरकार का काम नहीं है जो सभी भारतीय भाषाओं की नींव है? यह साहित्य अकादमी चला रहा है जो विभिन्न भारतीय भाषाओं में निर्मित साहित्य के लिए पुरस्कार देता है. राज्य में भी सरकारों द्वारा बहुत सारी अकादमियां चलाई जा रही हैं, यदि संस्कृत को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है, तो ऐसी अकादमियों का महत्व कम हो जाता है और उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए और सरकार को एकल भाषा खिड़की जो अंग्रेजी है.
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