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शिवसेना शिंदे की, उद्धव का हक नहीं

मुंबई . महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बुधवार को कहा कि एकनाथ शिंदे नीत गुट ही असली शिवसेना है. स्पीकर ने विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली सभी याचिकाएं भी खारिज कर दीं. उन्होंने कहा कि किसी भी विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया जा रहा है.
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले धड़े द्वारा एक-दूसरे के विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला पढ़ते हुए नार्वेकर ने यह बात कही. राहुल नार्वेकर ने कहा, 21 जून 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी समूहों का उदय हुआ तो शिवसेना का एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला धड़ा ही ‘असली राजनीतिक दल’ (असली शिवसेना) था.
गोगावाले अधिकृत सचेतक थे : उन्होंने कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के सुनील प्रभु 21 जून, 2022 से सचेतक नहीं रहे. एकनाथ शिंदे गुट के भरत गोगावाले अधिकृत सचेतक बन गए थे. 1200 पन्नों का यह फैसला सुनाते हुए उन्हें 105 मिनट लगे. वहीं, जैसे ही फैसला आया मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुट के समर्थकों ने पटाखे फोड़कर जश्न मनाना शुरू कर दिया.
शिवसेना प्रमुख किसी भी नेता को हटा नहीं सकता : विधानसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि शिवसेना के प्रमुख के पास किसी भी नेता को पार्टी से हटाने की शक्ति नहीं है. निर्वाचन आयोग को सौंपा गया वर्ष 1999 का पार्टी संविधान मुद्दों पर फैसला करने के लिए वैध संविधान था. उन्होंने कहा कि इस संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सर्वोच्च निकाय है. उन्होंने इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया कि पार्टी प्रमुख की इच्छा और पार्टी की इच्छा पर्यायवाची हैं. उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे समूह का यह तर्क कि वर्ष 2018 के संशोधित संविधान पर भरोसा किया जाना चाहिए, स्वीकार्य नहीं था.
फैसले की अहम बातें
● एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट ही असली शिवसेना. चुनाव आयोग ने भी यही फैसला दिया था

● शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटाने का फैसला उद्धव ठाकरे का था, पार्टी का नहीं. शिवसेना संविधान के अनुसार वे अकेले किसी को पार्टी से नहीं निकाल सकते
● शिंदे गुट की तरफ से उद्धव ठाकरे गुट के 14 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग खारिज हुई
● एकनाथ शिंदे सहित 16 शिवसेना विधायकों को अयोग्य ठहराने की उद्धव ठाकरे गुट की याचिका को भी खारिज कर दिया
शिवसेना के संविधान के तहत निष्कर्ष पर पहुंचे – ये तर्क दिए…
1. पार्टी का संविधान यह तय करने के लिए प्रासंगिक है कि वास्तविक पार्टी कौन सी है.
2. शिव सेना (अविभाजित) के संविधान में 2018 में संशोधन किया गया था पर यह रिकॉर्ड में नहीं है. 1999 का जो संविधान चुनाव आयोग के पास था उस पर विचार किया गया.
3. 2018 में कोई संगठनात्मक चुनाव नहीं हुआ.
4. 2018 में पक्ष प्रमुख को सर्वोच्च पद बताया गया. लेकिन यह संविधान के अनुरूप नहीं था.
5. शिवसेना के संविधान (1999) में कहा गया कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी सर्वोच्च संस्था है न कि पक्ष प्रमुख.
6. पक्ष प्रमुख के पास कोई पूर्ण शक्ति नहीं है.
7. शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटाने की शक्ति उद्धव ठाकरे के पास नहीं थी.
8. दोनों पक्ष दावा कर सकते हैं कि वे मूल पार्टी हैं.
9. उद्धव गुट ने दावा किया कि शिंदे गुट ने भाजपा के साथ मिलकर काम किया. लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई सबूत नहीं दिया.
10. उद्धव गुट का दावा था कि शिंदे गुट से बात नहीं हो पाई, लेकिन उद्धव गुट के दो नेता शिंदे और अन्य से गुवाहाटी में मिले थे.
आगे क्या
शिवसेना (यूबीटी) ने इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाने की बात कही है. शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत और उद्धव ठाकरे ने इसकी पुष्टि कर दी है.

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