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विगत दिनों सिंगल यूज प्लास्टिक (Singal Use Plastic) पर लगे प्रतिबंध एवं प्लास्टिक एवं कागज से बने चाय के कप में पीने वाली चाय के खतरनाक दुष्प्रभाव को देखते हुए इन दिनों मिट्टी के प्याले की डिमांड काफी बढ़ गई है.
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मिट्टी प्याले की बढ़ी मांग के कारण पुश्तैनी कुम्हार के आंखों में चमक लौट आई है.शहर के भारतीय नगर में बसे लगभग 10 परिवार के जीवन में फिर से उजाला होने की उम्मीद जगी है.मधुसूदन पंडित ने बताया कि हम लोग पहले खपड़ा बनाते थे. जिस की डिमांड अधिक रहने के कारण हम लोगों को काफी आमदनी होती थी. लेकिन विगत दो दशकों से सीमेंट एवं प्लास्टिक के चदरे से घर बनाए जाने के कारण खपड़े की मांग दिनानुदिन घटने लगी. जिस कारण युवा पीढ़ी इस पुश्तैनी धंधा से मुंह मोड़ने लगे. लेकिन लोकल फोर भोकल एवं प्लास्टिक कागज के प्याले से चाय पीने के दुष्परिणाम को देखते हुए लोगों ने मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीने आरंभ की है. जिस कारण बाजार में काफी डिमांड बढ़ गई है.
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उन्होंने बताया कि हम लोग प्रतिदिन लगभग 500 कूल्हर का निर्माण करते हैं. हमलोग मिट्टी खरीद कर लाते हैं. जिसका प्याला बनाकर उसे आग में पकाते हैं. जिसके लिए जलावन भी महंगे दाम में खरीद कर लाना पड़ता है.उन्होंने कहा कि बढ़ती महंगाई के कारण अभी भी मिट्टी के कुल्हड़ के दाम काफी कम है. जिस कारण किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अभी तक हम लोगों को सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की कोई सुविधा अब तक प्रदान नही की गई है. उन्होंने प्रजापति कुम्हार को सरकार द्वारा सहयोग एवं सहायता करने की मांग की है.